Sanket Hindi Kahani: विक्रम राय अपने दोस्त के घर से निकला| शाम का धुंधलका बढ़ने लगा था| मोटरसाइकिल पर चढ़कर यमुना पार कर अपने घर की ओर वह बढ़ चला|छोटे-छोटे बाल, लंबा-सुडौल शरीर, चटक चाल विक्रम के पुलिस अफसर होने का भ्रम पैदा करती| यमुना का पुल पार करते ही अचानक उसकी मोटरसाइकिल खराब हो गई|

यमुना के किनारे रिश्ते के आसपास फैली झाड़ियाँ तथा पेड़ अंधेरे की चादर ताने सोने की कोशिश कर रहे थे| विक्रम मोटरसाइकिल से उतरकर उसे ठीक करने लगा| अचानक पीछे से आवाज़ आई,“क्या बात है? किसका इंतज़ार हो रहा है?” विक्रम ने, बिना बोलने वाले की तरफ देखे,खीझ भरे स्वर में कहा,“चुप बे! डिस्टर्ब मत कर|” फिर धीरे से बुदबुदाया,‘एक तो सा….. गाड़ी धोखा दे गई, दूसरे बीच में बक-बक करता है|’बोलने के बाद विक्रम ने पीछे देखा| एक पुलिसिया उसके पास से हटकर तेज़ी-से जा रहा था|

विक्रम घबराया कि उसने तो पुलिस वाले को ही डांट दिया| कहीं वह कोई मुसीबत ना खड़ी कर दे| पुलिसवाले ने मुँह से खास तरह से दो तीन बार सीटी बजाई| विक्रम घबरा गया| अचानक पेड़ों के पीछे से निकलकर कुछ बदहवास लोग,अपने कपड़े ठीक करते हुए, इधर-उधर भागने लगे| उनमें कुछ औरतें भी थीं| विक्रम चकराया| क्षण भर में वे सब ऐसे गायब हो गए, जैसे गधे के सिर से सींग| विक्रम को अब मामला कुछ-कुछ समझ आने लगा|

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