Posted inलघुकथा

श्रध्दा सुमन

Short kahani in Hindi Shraddha Suman हरीश- “हे  भगवान  मेरी निशा और मेरा बबलू ठीक तो होंगे। चार महिने बाद मिलने जा रहा हूं।” (कोझीकोड के बेबी  मेमोरियल हॉस्पिटल जाते हुए वो सोच रहा था।) हॉस्पिटल पहुंचते ही उसने निशा को बाहों मे लेना चाहा पर नर्स ने रोक दिया,  नर्स- “अभी कमजोर हैं और […]

Posted inलघुकथा

बोरनबीटा

पीनट बटर के धोखे में सोया बटर ले आई जो बच्चों ने खाने से मना कर दिया। अब खुले डिब्बे का क्या करूँ?मैंने डिब्बा उठाया और रसोई में बर्तन मांज रही विमला को पकड़ा दिया। इससे पहले मैं कुछ कह पाती, वह चहक कर बोली, “बोरनबीटा?”“नहीं,ये मक्खन है, ब्रेड पर लगा कर बच्चों को खिला […]

Posted inलघुकथा

गहरी जड़ें

अवि जिस दिन विदेश से लौटा था, उसी दिन सब समझ गया था। आँगन में ही नहीं, चाची और उनके दिलों के बीच भी एक दीवार खड़ी हो गयी थी। मिनी उसकी चचेरी बहन थी रस्सी कूद, छिप्पम-छिपाई, गिट्टी फोड़ पंचगुटे आदि खेल कर वे साथ-साथ बड़े हुए थे। आज वो कम्प्यूटर कोचिंग से घर नहीं लौटी थी। चाची के घर में हड़कंप मचा […]

Posted inलघुकथा

बदलते  वक़्त का आईना

एक दिन सवेरे उठकर वह नित्यकर्म से निवृत्त होकर  वॉशबेसिन पर हैंड वॉश करने लगा ,तभी उसकी नज़र एकाएक वॉशबेसिन के सामने लगे बड़े से आईने पर पड़ी। वह एकबारगी चौंक सा पड़ा।सिर और मूंछों के बालों की सफेदी के साथ तांबई  रंग जैसा मुरझाया सा चेहरा उसे सामने दिखाई दिया।     उसने चौंक कर […]

Posted inलघुकथा

देशभक्ति -जनसेवा

देशभक्ति और जनसेवा के भावों से ओतप्रोत एक सिपाही मंत्री जी का गिरफ्तारी वारंट लेकर दौड़ रहा है। मंत्री जी की कार आगे आगे और सिपाही की टूटरी साइकिल पीछे पीछे……  दौड़ चल रही है ……. सिपाही थक गया है । बेहोश होकर गिर गया है ,इसलिए उसे नौकरी से निलंबित किए जाने का फरमान […]

Posted inलघुकथा

पकड़

बादल बरस-बरस कर थम गये थे, भादो खत्म होने को थी | कुसुमप्यारी अपने झोपड़े को लीप-पोत रही थी | उसका खसम (पति) नीम के पेड़ के नीचे टूटी खटिया पर पड़ा-पड़ा खाँस रहा था | कुसुमप्यारी के ब्याह को अभी मुश्किल से पूरे तीन वरस भी नहीं हुए थे | बेचारी का पति चमनू […]

Posted inलघुकथा

मंत्रीजी कोमा में 

मंत्री जी बड़े बेचैन थे | कभी उठते, कभी बैठते तो कभी टी. वी. चालू बंद करते | वैसे गोद लिए चैनल देखकर मंत्री जी तृप्ति की साँस लेते थे, लेकिन इसबार उन्हें शांति मिल ही नहीं रही | लाला हरामदेव की तमाम हरकतें आजमा कर देख लीं पर शांति का दूर-दूर तक कोई अता-पता […]

Posted inलघुकथा

अपराध बोध

“कितनी बार कहा है तुमसे ,इसे अपने आँचल से बाहर निकलने दो ;लेकिन नहीं, तुम्हारा सहारा लेकर हमेशा गोद में दुबकना चाहता है ।” “ऐसा नहीं है जी ,मैं हमेशा इसे बाहर भेजने की कोशिश करती हूँ और समझाती भी हूँ कि पापा के साथ फैक्ट्री जाना शुरू करो ,लेकिन वह कहता है ,”मम्मी मैं […]