क्लीनिक में मरीजों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। बीच-बीच में मरीज कम्पाउंडर से पूछ रहे थे, “क्यों भाई, डॉक्टर साहब कितने बजे आएँगे?”

बड़ी ही बेरुखी से वह सबको बस एक ही जवाब दे रहा था, “अपने समय से।”

सामने बैठी एक युवती बड़ी देर से कमर दर्द से तड़प रही थी। उसके पास खड़ा युवक, बेचैनी के साथ कभी बाहर देखता तो कभी उसे सांत्वना देता ।

तभी एक स्त्री और एक पुरुष ने वहाँ प्रवेश किया। उनके साथ ही परफ्यूम की सुगंध का एक झोंका भी प्रविष्ट हो गया । दोनों बेधड़क डॉक्टर की केबिन में घुसते चले गये। 

उनके चेहरे पर रत्तीभर भी दर्द का नामोनिशान न था। शायद वे डॉक्टर साहब की जान-पहचान के थे।

युवती के साथ वाला युवक भी अब केबिन के भीतर जाकर खड़ा हो गया। 

कम्पाउंडर ने छूटते ही उससे कहा, “आप बाहर चलिए।”

“क्यों? और लोग भी तो यहाँ बैठे हैं, जो अभी-अभी आए हैं?”

कम्पाउंडर ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहा, “इनका इमरजेन्सी केस है जनाब।”

“और जो मेरी पत्नी दर्द से तड़प रही है, क्या वह इमरजेन्सी केस नहीं है?” 

“आपको यहाँ का सिस्टम मालूम नहीं ! पहले नम्बर पर दिखाने के लिए चार सौ रुपये देने पड़ते हैं!”

“लेकिन पहले नम्बर पर तो मैं आया था। और आते ही मैंने फीस के दो सौ रुपये भी जमा करा दिए थे। तब तो आपने ऐसी कोई बात कही नहीं …!”

“देखिए, अब तो पहले यही लोग दिखाएँगे।” 

उनकी कहासुनी के साथ मरीजों में भी आक्रोश बढ़ता जा रहा था।

युवक ने तेजी से अपनी जेब से एक पाँच सौ का करारा नोट निकाला और उसके सामने पटकते हुए बोला, “लीजिए। अब तो सबसे पहले मेरी पत्नी को ही दिखाया जाएगा।” 

अचानक, कई हाथ एक साथ उसके सामने आकर प्रगट हो गये, किसी में पाँच सौ के तो किसी में सौ-सौ के तुड़ेमुड़े नोट, मानो उसे देखकर मुस्कुरा रहे थे।

परफ्यूम की सुगंध साथ हवा में अब पसीने की दुर्गंध भी घुलने लगी थी।

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