अब्दुल की  बाँह से लगातार खून बह कर उसके हाथों तक पहुंच चुका था और वह आश्चर्यचकित सा फर्राटे से जाती हुई साहब की गाड़ी को घूर रहा था ।

 आज से लगभग एक वर्ष पूर्व ,नौकरी की खोज में वह गांव से शहर आया था निरा अनपढ़ होने के कारण कोई भी काम नहीं मिला ।कचरा, ईंट, गारा ढ़ोना ,उसे कतई नहीं  भाया । 

एक दिन उसके गांव की  पहचान वाला एक साथी मिल गया और उस पर तरस खा उसे अपने फैक्ट्री के मालिक से मिलवाने ले गया । मालिक को उसके दो प्रिय ऐलसेशिन कुत्तों की देखभाल के लिए नौकर चाहिए था । पहले तो वह उनके हटे कट्टे कुत्तों को देख डर गया, लेकिन फिर पेट की आग के सामने डर को घुटने टेकने ही पड़े । 

लगभग सप्ताह भर में साहब के पुराने नौकर ने कुत्तों से उसकी जान पहचान करवा दी। अब वह सुबह शाम उन्हें खाना खिला घुमाने ले जाता और फिर नहला धुला, 

 घर लौट आता । बढ़िया खुराक और देखभाल के चलते कुत्ते हटे- कटे होते जा रहे थे और वह उनके साथ भाग -भाग कर और भी दुबला पतला ।

अचानक एक दिन आऊट हाऊस से निकलते हुए उसने जैसे ही टॉमी को जंजीर से बाँध बाहर ले जाना चाहा, वह जंजीर छुडा़ पार्क में भागती हुई बिल्ली की ओर लपका ।बिल्ली तो भाग गयी लेकिन टॉमी गुस्से में घुराता हुआ  अब्दुल की छाती पर चढ़ गया ।

उसने  उसकी कमीज़ की बाजु फाड़ उसकी कलाई को मुँह में दबोच लिया । आत्मरक्षा में उसने बगीचे पर पड़े खुरपे से उसपर वार किया । टॉमी के कान के पास चोट लगी और वह “के,के ..” करता हुआ पूरे बगीचे में भागने लगा ।

शोर सुन साहब का चहेता नौकर रामू बाहर आया और अब्दुल की पूरी बात सुने बिना साहब को शिकायत लगाने तेज़ी से अन्दर भागा ।  साहब आए ,अब्दुल ने खून से भरा हाथ उन्हें दिखाते हुए जैसे  कुछ बताना चाहा उन्होंने बीच में ही टोक दिया, ” चुप रहो , तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई टॉमी पर हाथ उठाने की?

कल से काम पर मत आना” और टॉमी को पुचकारते हुए , उसे गाड़ी में बिठा  डॉक्टर को दिखाने चले गए । अब्दुल अपराधभाव का बोझ लिए , भारी कदमों से घाव धोने बगीचे में लगे नल की ओर बढ़ने लगा ।

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