Parapeedak Hindi Short Story: “ये क्या मेघा, तुम बड़ी थकी थकी दिख रही हो?” दरवाजा खोलते हुए अनन्या ने पूछा|

“यार अंदर आने दे| सब दरवाजे पर ही पूछ लेगी|”

“हाँ, हाँ आ| अब बता, कहाँ से आ रही है?”

“क्या बताऊँ? वो ही कोर्ट की तारीख, वकीलों की बहस, वहाँ का माहौल सब बहुत उबाऊ और थकाने वाला होता है|”

“हाँ वो तो तू सही कह रही है| एक बात बता जब जय और तू अपनी शादी सही से निबाह नहीं पाए तो तो सब कुछ छोड़, नये सिरे से जिन्दगी क्यों नहीं शुरू करती|”

“ऐसे कैसे छोड़ दूँ? वो मुझे तलाक देगा कभी नहीं| जानती है जब वो बैसाखी का सहारा लेकर, उजड़ा चमन बना कोर्ट में आता है तो मुझे बहुत सुकून मिलता है|”

“ये कैसा सुकून? देख मेघा तेरी सहेली  होने के नाते मैं सब जानती हूँ| जय जैसे  इन्सान बिरले ही होते हैं| पहले भी तूने अपनी महत्वकांक्षा के चलते उसका घर सही से नहीं सम्हाला| यहाँ तक कि तूने माँ  बनने से भी इंकार कर दिया और जब दुर्घटना में वो अपना एक पैर खो बैठा तो तूने उसके जमीर को व्यंग्य बाणों से लहुलूहान कर दिया| अब जब वो तलाक ले इन सबसे मुक्त होना चाहता है तो तू तलाक नहीं दे रही|”

“तू मेरी सहेली है या जय की हिमायती| मैं उसे कभी तलाक नहीं दूंगी| मैं उसे घुट-घुटकर खत्म होते हुए देखना चाहती हूँ|” मेघा ने वितृष्णा से मुस्कराते हुए कहा|

“दूसरों को पीड़ा देकर प्रसन्न होने वालों को परपीड़क कहते हैं ऐसे चरित्र के विषय में सुना था परन्तु देख आज रही हूँ तुम्हें चिकित्सा की आवश्यकता है जब तुम इस बात को स्वीकार कर लोगी तभी तुम मेरे घर आना उससे पहले नहीं| अब तुम जा सकती हो|” अनन्या ने मेघा को दरवाज़ा दिखाते हुए कहा| मित्रता का तलाक ले, मेघा सिर झुकाए निकल पड़ी|

(Visited 1 times, 1 visits today)

Republish our articles for free, online or in print, under a Creative Commons license.