Sharmindagee:अस्पताल के डीलक्स रूम में मैं अकेली लेटी हूँ . यह कमरा दो मरीजों के लिए है.दोनों पलंगों के बीच में पर्दा लगाया हुआ है .उस ओर का पलंग अभी खाली है .कोई आ जाए तो कुछ बातचीत हो जाया करेगी . अभी मुझे यहाँ आठ दिन रहना है . पेट में ट्यूमर हो गया था , परसों ही ऑपरेशन हुआ है .दिन में घर का कोई सदस्य यहाँ रुक नहीं सकता नर्स ही सब देखती है. रात को कभी पति तो कभी बेटा आ जाते हैं ।

चूँकि समाज में हम प्रतिष्ठित हैं तथा सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहते हैं इसलिए मिलने जुलने वाले आते ही रहते हैं .कई लोग फूलों के गुलदस्ते ले आते हैं उन्हें कमरे में सजा दिया जाता है .उन फूलों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है .अगले सप्ताह क्रिसमस है लेकिन मुझे छुट्टी नहीं मिल सकती .अस्पताल में ही वह विशिष्ट दिन कट जाएगा ।

अगले दिन एक महिला साथ वाले पलंग पर आई .पर्दा सरकाकर मुझसे बातचीत करते हुए उसने बताया कल उसका ऑपरेशन है ,किडनी में स्टोन हो गया है . नियत समय पर उसका ऑपरेशन हो गया . पूरा दिन उससे मिलने कोई भी नहीं आया .हमारी बातचीत होती रहती थी .उसने बताया दो दिन बाद उसे छुट्टी मिल जाएगी और वह अपने घर बड़े चाव से क्रिसमस का पर्व मनाएगी।

मेरे पलंग के आसपास गुलदस्तों का अच्छा खासा ढेर लग गया था .एक बार सोचा साथ वाली महिला के पास एक भी गुलदस्ता नहीं है उसे दे देती हूँ .फिर मन में आया इतने सुंदर फूल हैं ,मेरे परिचित ,मित्र सम्बधी इतने प्यार से दे गये हैं मैं इन्हें नहीं दे सकती .लेकिन मन में कुछ खटक भी रहा था क्या फर्क पड़ता है एक गुलदस्ता उसके पलंग से पास रखवा दूं !

अगले दिन उससे मिलने एक महिला आई .उसके हाथों में प्लास्टिक के फूलों का गुलदस्ता था .उसने गुलदस्ते को पलंग के पास रखे टेबल पर सजा दिया , कुछ देर बातचीत की और चली गई.मेरे मन में जो हल्की सी अपराधबोध की भावना उभर रही थी गुलदस्ता न देने के कारण ,वह समाप्त हो गई । सोचा चलो अच्छा है अब उसके पास भी एक गुलदस्ता है . दूसरे दिन उसे छुट्टी होने वाली थी .वह बड़ी प्रसन्न थी .दोपहर को उसका कोई सम्बन्धी आया .अपना सामान समेट कर वह उठी , मुझसे मिलने आई क्रिसमस की बधाई देते हुए उसने प्लास्टिक के फूलों वाला गुलदस्ता मेरे हाथों में थमा दिया और मुस्कुराती हुई बाहर निकल गई .मेरे हाथों में पड़ा वह प्लास्टिक के फूलों वाला गुलदस्ता कमरे में पड़े ताजा  फूलों के ढेरों गुलदस्तों पर भारी पड़ रहा था ।

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