Ghar ki Safai Short Stories: सुनती हो! हाँ बोलिए! बड़ी जल्दी शुरू हो गई इस बार दिवाली की सफाई। हाँ शुरू कर दी है, आपको क्या है बस बैठे बैठे लिखते रहते हैं। हमें ही जब करना है तो धीरे धीरे कर लेंगे। मगर करते समय जरा ध्यान रखना, वैसे तो सफाई तुम रोज ही घर में करती हो। शायद इस बार कबाड़ वगैरा में कहीं मेरी कोई किताब या कोई पुरानी डायरी ही मिल जाए। उसमें मेरी कुछ कविताएं हैं, कुछ कहानियां होंगी। मै तो उनके बिना जितना दिख रहा हूँ शायद उतना ही रह गया हूँ।

हां ठिक है ध्यान रखूंगी। लेकीन मैंने आपसे कितनी बार कहा है कि आपकी सारी डायरियां कलकत्ते ही रह गई हैं। सारी किताबें डायरिया छोड़ कर आप ही वापस आए थे। वहीं सब रह गया था। साथ ही अच्छी खासी नौकरी भी वहीं छोड़ आए उसे तो कभी नहीं खोजा।

अरे यार ठीक है, पर ध्यान रखने में क्या हर्ज है। पिछले आठ साल से हम दिवाली में घर की सफाई में नहीं हैं। इस बार हो दिवाली के समय। शायद कुछ और भी कोई काम की चीज मिल जाए। वो आपको बोलने की जरुरत नहीं। इस बार मेरे साथ मेरी देवरानी भी है और वो आपसे कहीं ज्यादा समझदार है। वो इन सब बातों का पूरा ख्याल रखती है। और मैं तो हूँ ही। बस अब आप कम बोलो मैं ध्यान रखूंगी।

एक हफ्ते के बाद छत की सफाई के समय :– हां जी देखो! आप ठीक कह रहे थे। एक तल्ले वाले कमरे में एक बोरी में पुराने बहुत से एलबम, आप की बहुत सारी डायरियां, किताबें मिली हैं। देखना हो तो देख लो।

कुछ देर देखने के बाद, यह मिल गया, इधर आओ देखो। अरे सब फैला दिए रुको ये सब समेट कर आती हूँ। तुम बाकी सब छोड़ो बाद में रख देना। क्या करना है? एक बार बैठो ना। अरे क्या कर रहे हो? देवर देवरानी यहीं हैं। रहने दो झुठ ना बोलो यहां कोई नहीं है तुम्हारे और मेरे सिवा।

अरे क्या मिला है? जो पागल हुए जा रहे हो। कुछ नहीं, बस ये डायरी, इसमे तुम पर लिखी कविताएं, आज का मिलन और तुम।

ना रोको मुझे, ना टोको मुझेबस देखो मुझे…
मैं आसमां में उड़ने वाला हूँ।

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