मिस्त्र के पिरामिड देखने गए थे। इसी सिलसिले में एक दिन वहाँ की लोकल बस में यात्रा करनी पड़ी। श्रीमति जी को बाहर के दृश्य बहुत भाते हैं तो वह विंडो सीट पर थीं, हमारा 5 वर्षीय नटखट पुत्र, पारस, हम दोनों के बीच बैठा था। वह बोर होकर वह खड़ा हो गया। हम मुस्कुरा दिए उसने अपने मन बहलाव का रास्ता ढूंढ लिया था।

हम फोन में कुछ तलाश करने लगे। दो मिनट में हंगामा हो गया। एक अरब, अरबी भाषा में पारस को गालियाँ दिये जा रहा था। सभी लोग हमें अज़ीब तरीके से घूरने लगे। बस में अधिकतर अरबी ही थे, विदेशी बस हम लोग ही थे। अज़ीब सी कचर-कचर होने लगी। पल्ले कुछ पड़ नहीं रहा था। पारस तो घबरा कर रोने लगा था।

बस को सड़क के किनारे रोक दिया गया। बस का कंडक्टर हमारे पास आया, जो अंग्रेजी जानता था। उसने उस अरबी से बात की और हमें समझाने लगा—

“आपके बेटे (मर्द) ने परदानशीं का परदा उसके चेहरे से हटा दिया। यहाँ पर यह ज़ुर्म है। आप इससे माफ़ी माँग लें, वरना यह तो आपको पुलिस में देने की बात कर रहा है!” उसने हमें बताया।

हम तो हैरान रह गए अपने पारस की शैतानी पर। उससे पूछा तो उसने बताया—

मैं तो उनके साथ छुपाछुपी खेल रहा था, वो छुपीं थी, तो मैंने कपड़े के पीछे ढूँढ लिया,” उसने हाथ में लिए रुमाल से चेहरा छुपा लिया।

हमें बड़ी कोफ़्त हुई। 5 वर्ष का बच्चा ही तो था, और वह भी उसके साथ खेल रही थीं, बच्चे ने अगर देख भी लिया तो क्या आफ़त गई?

श्रीमति जी उस अरबी की बीवी से मूक वार्तालाप करने लगीं। मैंने अरबी से मूक माफ़ी मांगी। हमारे पास एलेक्जैंड्रिया से खरीदी कुछ सुंदर वस्तुएं थीं, जो उन्हें भेंट में दीं तो अपनी बीवी के मनाने पर अरबी मियाँ मान गए। कुछ यूँ बला टली, सीख नई मिली।

(Visited 1 times, 1 visits today)

Republish our articles for free, online or in print, under a Creative Commons license.