Ek Anokha Phaisala Hindi Kahani: शिक्षा के व्यापारिकरण ने स्कूल को सेवाकेन्द्र बना दिया है। एक ऐसा माहौल बना दिया गया है जहां छात्र और उसका परिवार उपभोक्ता है, शिक्षक एक सेवक है और प्रबंधन केवल ये सुनिश्चित करता है कि हर अभिभावक संतुष्ट रहे, खुश रहे और उसे शिकायत का मौका न मिले। शिक्षक परंपरागत विधि और आधुनिकीकरण का शिकार होकर रह गया है। जितनी देर शिक्षक, अपनी कक्षा में जाकर पढ़ाता है, उससे ज्यादा देर वो कम्प्युटर पर कक्षा- कार्य, गृह-कार्य और परीक्षा सामग्री आदि भेजने में लगा रहता है।

स्कूलों में शिक्षक हमेशा भयभीत भी रहता है कि न जाने कब उसको किस गलती के लिये तलब कर लिया जाये। क्योंकि शिक्षक के सम्मान के दिन तो लद गये। अब सामान्य रूप से कम चलता रहे और कोई व्यवधान न खड़ा हो, यही शिक्षक की कामना रहती है, सम्मान तो इतिहास में शामिल हो गया। हर कक्षा में सी॰सी॰टी॰वी कैमरे लगे होते है लेकिन फिर भी शिक्षक को उससे कोई फायदा नहीं होता क्योंकि हर छात्र को पता होता है कि प्रधानाचार्य और प्रबंधन उन्हे देख रहे है पर वो शिक्षक की दयनीय स्थिति से भली-भांति परिचित होते है।

कुछ दिनो पहले अचानक ही मेरी एक सहेली प्राची का फोन आया, हम आसपास ही काम करते थे, वो बहुत परेशान थी। शाम के लगभग छह बजे थे। मुझे लगा वो बहुत बड़ी समस्या से घिरी थी। अतः मै तुरंत उसके घर पहुंची। उसकी हालत देखकर मुझे लगा शायद उनके परिवार में किसी की मृत्यु हो गयी है। उसके चेहरे की हवाइयाँ उड़ रही थी, चेहरा सफ़ेद पड़ गया था जैसे खून ही न हो। मुझे देखते ही वो फुट-फुटकर रोने लगी।

मैंने पूंछा, “प्राची, क्या हुआ तुम ऐसे क्यों रो रही हो?”

बहुत मुश्किल से अपनेआप को काबू में करके उसने दुखभरी कहानी सुनायी, “आज मै स्कूल गयी थी, रोज़ की तरह। जब लंचब्रेक चल रहा था, तो मेरे पास रिसेप्शन से फोन आया कि एक छात्र के पिता आपसे मिलना चाहते है, मैंने सोचा कोई समस्या होगी, तो मैंने दो बजे बुलाने को कहा”।

मेरा दिल एक अजीब आशंका से कांप रहा था।

बड़ी आतुरता से मैंने पूंछा, “फिर क्या हुआ?”

प्राची बोलती जा रही थी और उसके आँसू अनवरत बह रहे थे, “ दो बजे मै रिसेप्शन पर पहुँच गयी, मुझे शिवांश के पिता दिख गये, मै पहले भी उनसे मिल चुकी थी। मैंने उन्हे एक कैबिन में बिठाया। जब मैंने उनसे पूंछा कि क्या समस्या थी, तो एक दम चिल्लाने लगे कि तुमने मेरे बेटे को थप्पड़ क्यों मारा। मैंने बड़े ही शांत रह कर कहा कि मैंने आपके बेटे को नहीं मारा। तब उन्होने फोन से शिवांश को वहीं बुला लिया और ज़ोर से कहा कि क्या इसने तुझे थप्पड़ मारा? उनके बोलने के अंदाज़ से मै हिली हुई थी, पर जब शिवांश ने भी ज़ोर से कहा कि मारा था थप्पड़। मुझे समझ नहीं आया कि क्या कहूँ। मैंने शिवांश से पूंछा कि मैंने आपको क्यों मारा? इस पर वो बड़े अकड़कर बोला कि मैंने कहा था मैंने काम कर लिया है इसी बात पर आपने मारा”।

तब मैंने कहा, “ तुमने उस बच्चे के पिता को क्यों नहीं समझाया”?

प्राची ने कहा, “ क्या करती! मैंने बहुत कोशिश की ये समझाने की, कि मैंने उसको नहीं मारा, लेकिन वो अपने बेटे के सामने ही मेरा अपमान करते रहे और मुझे पागल और न जाने क्या-क्या कहते रहे। फिर उन्होने मुझे धमकी दी, कि अभी प्रबन्धक से तुम्हारीशिकायत करता हूँ। ये कहकर वो व्यक्ति कैबिन से बाहर चला गया”।

पर ये समझ नहीं आ रहा था कि उस बच्चे ने झूठ क्यों बोला?

आगे की बात सुनकर तो मेरे पैर के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी।

प्राची बोली, “ उसके बाद जो हुआ , वो तो बिलकुल अजीब था। प्रबन्धक महोदय ने मुझे बुलाया और क्षमा पत्र लिखने को कहा”।

मैंने हैरान होकर पूंछा, “पर क्या उन्होने तुमसे कुछ भी नहीं पूंछा”।

इस पर उसने कहा, “ नहीं उन्होने कहा बस, माफीनामा लिख दो और बात को खत्म करो। पर मैंने कहा जब मेरी गलती ही नहीं थी तो मै माफीनामा क्यों लिखूँ?और उस व्यक्ति ने जो मेरा इतना अपमान किया उसका क्या”?

मैंने कहा, “ वो ऐसा कैसे कह सकते है, वो सी॰सी॰टी॰वी कैमरे से भी तो चेक कर सकते थे”।

प्राची ने कहा, “ मेरा न कहने पर उन्होने कहा फिर हम आप को नौकरी पर नहीं रख सकते, आप इस्तीफा दे दो”।

मतलब साफ था, अभिभावकों को या तो माफीनामा दिखाना था या उन्हे बताना था कि हमने उस अध्यापिका को नौकरी से निकाल दिया। प्राची के मान-सम्मान, ईमानदारी, कर्तव्य-निष्ठा का कोई मूल्य न था।

मैंने प्राची को समझाया कि शायद तुम्हारे आने के बाद वो लोग पता लगाने की  कोशिश करे, हो सकता है कल वो मामला शांत होने पर तुम्हें बुलायेँ । पर प्राची उस अपमान को सहन नहीं कर पा रही थी जो स्कूल में हुआ। उसे ये भी डर था कि जब वो कल स्कूल नहीं जायेगी तो सारे पड़ोसियों को भी पता चल जायेगा कि उसे स्कूल से निकाल दिया गया है। लेकिन इस संसार में मध्यम वर्गीय लोगों को दोनों ओर से पिसना पड़ता है। वे काम करने के लिए भी मजबूर होते हैं और उनको न्याय भी नहीं मिलता।

तीन दिन बाद जब मै प्राची से मिलने गयी तो उसने बताया की स्कूल से कोई फोन नहीं आया। न ही स्कूल वालों ने कुछ पता करने की कोशिश की। बल्कि उन्होने उसकी जगह एक नयी शिक्षिका को काम पर रख लिया। लगा कितना आसान हो गया है शिक्षक के मन सम्मान से खिलवाड़ करना। लगा अब गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश नहीं बल्कि सबसे अधिक शोषित वर्ग में शामिल कर देना चाहिये। बिना गलती करे  इतनी बड़ी सज़ा तो अपराधी को भी नहीं मिलती। सत्य को जाने बगैर ही सज़ा देने का ये अनोखा उदाहरण था।

लेकिन सत्य को विचलित किया जा सकता है पराजित नहीं।

फिर भी  कुछ प्रश्न थे:

अभिभावक को प्राची को चोट पहुँचाकर क्या मिला?

प्रबन्धक की  अपने कर्मचारियों के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं है?

कितना अनोखा फैसला था एक शिक्षिका को प्रताड़ित करने के लिए? निष्कर्ष – शायद भविष्य में कोई भी शिक्षक बनना नहीं चाहेगा।

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