विद्यालय में एक रोज शिक्षामंत्री आ धमके । भय का वातावरण चारों तरफ फैल गया । प्रिंसीपल आव-भगत में लग गए । उनके साथ क्षेत्रिय विधायक और पार्षद भी थे । सभी के साथ चमचों की भीड़ भी साथ चल रही थी । भवन निरीक्षण में फतवे पर फतवे जारी हो रहे थे । त्रुटियों पर प्रिंसीपल को समझाया-धमकाया भी जा रहा था । 

 बाथरूम में टूटिया टूटी हुई थी । कमरों में पंखों की पंखुड़ियां मुड़ी हुई थी । बाथरूम के अधिकतर पोट टूट चुके थे । कागज भी यहां-वहां फैले पडे थे । उन्हें देखकर मंत्री जी का खास चमचा कुछ ज्यादा ही बोलने लगा था । प्राचार्य और शिक्षक शांतभाव में सभी कुछ ह्रदयगम करते रहे ।

       काफी देर तक निरीक्षण होता रहा, बाद में थोड़ी शांति हुई तो प्रिंसिपल कहने लगे– “साहब ! पुरानी बिल्डिंग है, शरारती बच्चे हैं, तोड़फोड़ करते ही रहते हैं । हम ठीक करवाते भी हैं परन्तु अगले रोज वही मंजर पुुुन: दिखाई पड़ता है । फिर भी, हम निरंतर प्रयास करते रहे हैं और अपना यह प्रयास आगे भी जारी रखेंगे ।”

       मंत्री जी कहने लगे– “लोकतंत्र है । सभी को आजादी हासिल है । किसी को कुछ करने से रोकना संविधान संगत नहीं । हम केवल यही चाहते हैं कि आप उन्हें समझाते रहेंं, ज्ञान देते रहें । उन्हें सही मार्ग पर चलने की सीख देते रहेंं । आप शिक्षक हैं, बच्चों के मनो-विज्ञान को समझना और उन्हें  समझाना आपका काम है ।”

      “सर ! हम अपना कर्तव्य समझते हैं ।”

      घूरकर प्रिंसीपल को देखते हुए उनके एक चमचे ने प्रश्न दागा– “छात्र आपके कंट्रोल में नहीं तो आपकेे प्रिंसीपल होने का कोई महत्व नहीं है ।”

      “आपके सुझाव को सलाम करता हूं ।” प्रिंसीपल ने लाचार निगाहों से उसकी ओर देखा और विनीत भाव में जवाब देकर शान्त हो गए ।

       चपरासी इंद्रदेव तिवारी वहाँ मौजूद था । उनकी सभी बातें बड़े ध्यान से सुन भी रहा था । उसको वह पहचानता भी था । कुछ देर तो वह कुछ बोला नहीं, फिर उससे रहा नहीं गया । चेहरे पर कुछ क्रोध और कुछ डर लिए तपाक से वह बोल ही पडा–“तुम्हारे पिता तुम्हें कंट्रोल कर पाए थे क्या ?..तुम्हारी बदचलनी की वजह से फांसी लगाकर मर गए ।…तुम क्या कंट्रोल हो पाए थे ?”

       सभी अवाक् चपरासी को देखतेे ही रह गए।

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