दिल्ली में ‘आप’ की सरकार बनी। निठल्ले और लम्पट्ट खुश हुए। सरकार ने स्कूलों का निरीक्षण करने को उनकी टीमें बनाई। विद्यालय प्रबन्ध समिति में भी उनकी संख्या निश्चित कर दी गई।

        अहंकार और उमंग के साथ ये लोग स्कूलों में पहुँचने लगे। कार्य को जाँचने और टीचर्स को समझाने की प्रक्रिया चल पड़ी। मेरे स्कूल में भी इस टीम का आना हुआ। उनकी चाल में अदब रौब था। कपड़े सफेद और सलीकेदार थे। अज्ञानतावश शरीर की अकड़ बढ़ गई थी। आखिर सरकार के हितैशी और नुमाइन्दे जो थे।

        निठ्ठल्ले और लम्पट्ट दोनों निरीक्षण करने लगे। यहाँ देखा, वहाँ देखा। छत देखी, फर्श देखा। पढ़ाने का तरीका देखा और टीचर्स को सलाह भी दी जाने लगी। किसी को आराम से और किसी को क्रोध में।

        पुरानी इमारत! टूटे फर्श, सरिया झाँकते लैंटर, बल खाए दरवाजे और खिड़कियाँ। प्राचार्य पर कर्तव्यों की बौछार भी होने लगी। बाथरूम की चिकलन, मैदान की धूल, उड़ते कागज के टुकड़े दिखा-दिखाकर फटकार लगाई जाने लगी। कोई कुछ नहीं बोला। निरीक्षण चलता रहा।

       अनचाहा डर सभी में व्याप्त हो गया था।

       उन्होंने रिपोर्ट के नाम पर ढेरों कमियाँ सभी के सामने रख दी। पढ़ाने का सलीका बताया गया। धमकाया भी गया। स्कूलों में सभी परेशानी के भाव से घिरने लगे। ऐसा शून्य फैलने लगा मानो शिक्षा निदेशक या शिक्षा मंत्राी स्वयं आ धमके हों। मंत्री जी के नाम की गूँज भी बहुत बार सुनाई दी जाने लगी थी।

       एक रोज मेरे स्कूल में उनके द्वारा भाषण पर भाषण दिया गया। सरकारी आदेश पालन पर ढेरों प्रश्न और उनके जवाब भी प्रस्तुत हुए। इसके अलावा, चाय-पान भी हुआ, मेहमान नवाजी भी हुई। प्राचार्य और टीचर्स सभी हाथ बाँधे खड़े रहे। अजीब-सा खौफ चारों तरफ फैल गया था।

उनके चले जाने के बाद अर्थशास्त्र प्रवक्ता राजीव खारी मेरे कक्ष में आए। मुस्कुराहट होठों पर बिखेर कहने लगे–‘‘सर ! आपने अपने विद्यार्थी का रौब देखा?’’

          ‘‘मेरे कौन से विद्यार्थी का रौब?’’

          ‘‘यही, जो अभी चैकिंग कर गए हैं।’’

          ‘‘ये मेरे विद्यार्थी कैसे हुए?’’

          राजीव खारी धीमें से हँसे और मुस्कुराते हुए मुझे बताने लगे–‘‘यह छतरपुर के स्कूल में पढ़ता था। आज से आठ वर्ष पूर्व, उस वक्त आप वहाँ प्रिंसीपल थे। बदमिजाज और उदण्ड था यह। स्कूल से भागना, चोरी करना, अपने कुछ साथियों को लेकर झगड़ा फैलाना, मारना-पीटना, टीचर्स से उलझना इसका नित्यप्रति का काम था।’’

         ‘‘अच्छा।’’

         ‘‘इसकी हरकतों से तंग आकर आपने इसे स्कूल से निकाला था। उस समय यह ग्याहरवीं कक्षा का छात्रा था। इसे प्रवेश निष्कर्मण रजिस्टर में रेड लाइन भी आप द्वारा किया गया था।’’

         यह सब सुनकर संस्कृत प्रवक्ता सन्तोष गुप्ता जोर-जोर से हँसने लगी।

         ‘‘अब क्या करता है।’’ मेरी उत्सुकता बढ़ी।

         ‘‘आवारा और लम्पट्ट नेतागिरी करने लगा है।’’

         ‘‘वाह मेरी सरकार! पढ़े-लिखों पर लम्पट्ट भारी…।’’ मेरे मुख से वाक्य निकला और सभी खिलखिलाकर हँस दिए।

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