Apne Hindi short story: ‘अवर हेल्पर्स‘ पाठ एक और बार दोहरा कर बेटी को परीक्षा के लिए भेज, रिया घर के बाहर ही गुनगुनी सी धूप में कुर्सी डाल बैठ गयी।
जादूगर, रोज़ आने वाले भिखारी, डाकिया अंकल, सड़क पर झाड़ू लगाने वाली आंटी, फेरी वाले, सब्जी वाले, फलों वाले, रात में तेज आवाज़ लगाते चौकीदार भैया , सुबह–सुबह साइकिल पर दूध ब्रेड लाने वाले अंकल, गैस सिलेंडर लाने वाले भैया जैसे कितने ही पिता सी छवि वाले किरदार उसकी आँखों मे घूम गए। कितनी रौनक रहती थी उस छोटे शहर की कॉलोनी में। वहीं उसकी बेटी इनमें से एक को भी नहीं पहचान पाती थी। उसे सब किताब के चित्र से ही समझाना पड़ा था। वह बैठे बैठे अकेलापन महसूस करने लगी।
अवसाद से घिरती रिया को तभी एक डिलिवरीमैन नज़र आया। रिया के मन मे सकारात्मक ऊर्जा आई कि बस स्वरूप बदला है, हैं तो आज भी।
लेकिन पड़ोसी के आने तक डिलीवरी मेन ने समान बैग से निकाल कर बाहर रखा था। ऑनलाइन पेमेंट होने के कारण समान लेते ही दोनों अपने रास्ते चल दिए। एक नज़र तक नहीं मिली दोनों की जैसे दो मानव नहीं मशीन अपना अपना काम कर ने में व्यस्त हों।
रिया और गहरे में डूब ही रही थी कि गली में डाकिया आया। वह साइकिल रोक, पत्र आदि छाँटने लगा। यह देख रिया खड़ी हो गयी।
डाकिए का ध्यान गया तो देख कर बोला, “इस मकान नंबर की कोई डाक नहीं है बेटा।” रिया की आँखों मे पानी आ गया, वह बोली,”मेरी डाक मुझे मिल गयी है। अंकल, आप दो मिनट रुकें, मैं लड्डू लाती हूँ।”
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