God uthaee kee rasm hindi kahan: ” माँ ! जल्दी से नवजात के लिये ओढ़ना , बिछोना , कपड़े दो । ‘”
डॉ बेटी विभा ने अपनी माँ से कहा .
“अचानक ऐसा क्यों कह रही हो ?”
” अभी बस में प्रसव वेदना से पीड़िता ने लड़की को जन्म दिया है । विविध जाति , धर्म के लोगों से भरी बस में किसी ने भी उसकी सहायता नहीं की । संजोग से मेरे संग मेरी डॉ सहेली शिल्पा भी उसी बस में थी । अभी उसे नगरपालिका के अस्पताल में भर्ती करा के आयी हूँ । हमारी सहायता से डाक्टरों ने उस गरीब , दलित स्त्री को भर्ती करने में कोई आनाकानी नहीं की । उसके पति ने उसे छोड़ा हुआ है । उसे आर्थिक मदद भी चाहिए । “
” ठीक है , यह लो उसके पहनने के लिए मैक्सी , धोती , नवजात के लिए कम्बल ,चादर , कपड़े और जच्चा के लिए हरीरा , एक हजार का नोट भी और आगे भी उसे जरूरत होगी तो हम उसकी मदद करेंगे ।”
सब समान फटाफट थैले में भर चेहरे पर मानवता की मुस्कान लिए डॉ विभा फुर्ती से अस्पताल में पहुँची और दूसरे की अजनबी नवजात बेटी को अपनत्व की गोद में ले के गोद उठाई की रस्म कर खुशी से झूमने लगी और मानवता की रक्षा हेतु एक बेटी के कंधों ने दूसरी नवजात बेटी की ऊँगली थाम के उसकी माँ के हाथ में पर्स में से एक – दो हजार के दो नोट थमा के फिर मिलने का और आर्थिक मदद देने का वादा कर के दोनों सहेलियाँ फर्ज का आशियाना बन अपने घर चल दी . नवप्रसूता ने अपनी आँखों में गरीब – अमीर , जातिभेद , ऊँच – नीच की लकीर मिटी देख के उन दोनों की इंसानियत की ऊँचाई की चमक को देख रही थी . जो समरसता की गंगा बहा रही थीं । ऐसा महसूस कर थी जैसे लक्ष्मी ने लक्ष्मी का स्वागत कर खुशियों ने दिवाली मनायी है ।.
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