Sammaan hindi kahani: पूरे राजसी अंदाज में दूल्हा दुल्हन के द्वार पर रथ से उतरा और रिबन काटने की रस्म निभाई। सुरेखा ने वरमाला डालने के लिए जैसे ही केशव के गले की तरफ हाथ बढ़ाया, मित्रों ने केशव को कंधों पर उठा लिया। लज्जित सुरेखा ने दोबारा फिर असफल प्रयास किया।

“अरे भाभी जी! ऐसे ही भैया को नहीं सोपेंगे।” कुछ मनचले बारातियों ने कहा।

सामने से हूटिंग, किलकारी और तालियाँ गूँज उठी। यह देख लड़की के पिता बृजपाल का मन भर आया। उसके हाथ बेटी के हाथों के साथ ऊपर उठ रहे थे। उसके मन की पीड़ा आंखों में उतर आई थी। “अरे बेटा! बस भी करो, बहुत हो गया। प्लीज…मान भी जाओ बेटा।” याचक-सा मुंह बनाते हुए लड़की के पापा ने कहा।

“अरे अंकल! यह मस्ती मारने का मौका बार-बार आता है क्या…?” बेपरवाह युवकों ने कहा।

सुरेखा, पापा की यह बेबसी और आंसुओं में डूबी आँखें देख न सकी। उसके मन में पीड़ा की हूक-सी उठी और आँखें भर आई। सुरेखा वरमाला लिए सखियों में सबसे पीछे चली गई और मुँह फेर कर खड़ी हो गई। उसे दुख हुआ  कि उसने उस आदमी को चुना जो रस्म निभाना और सम्मान देना ही नहीं जानता।

  सबके मुँह खुले रह गए मानो उड़ते रंगीन गुब्बारे पिचककर जमीन में धंस गए हों।

    सुरेखा के मम्मी-पापा भी परेशान और रोते-बिलखते उसे समझा रहे थे। केशव के पिता ने हाथ जोड़कर माफी मांगते हुए कहा, “आपकी शिक्षा और संस्कार बहुत पवित्र और गहरे हैं। मैं यहां आपसे हार गया।” कहकर वह बाहर आ गया। सुरेखा की दीपक-सी आंखों से भल-भल बहते आंसू देख कर केशव के मन में अलग तरह की चेतना जागृत हुई।

   “सुरेखा ने शादी करने से इनकार कर दिया तो माँ से किये वायदे का क्या होगा…लोग क्या कहेंगे… इस परिवार पर क्या बीतेगी।” केशव इसी उधेड़बुन के सागर में डूबता-डूबता तैर गया ।

  “सुरेखा! आज के बाद जिंदगी में कभी ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे तुम्हारे मान-सम्मान को ठेस पहुंचे।” यह कहकर माफी मांगते हुए केशव घुटनों के बल बैठ गया। सुरेखा के मम्मी-पापा ने सारे गिले शिकवे भूलकर केशव को गले लगा लिया और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा मंडप झूम उठा।

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