Shabdon ka khel hindi story : गर्ल्स कॉलेज के बाहर सौरभ अपनी ऑटो लेकर खड़ा था। शाम के छ: बज रहे थे।

छुट्टी होते ही कनक ऑटो के पास आई और आटो वाले से पूछा – साकेत चलोगे क्या?” 

यस मैम!बैठिए…आप!

थोड़ा रूककर कनक ने कहा -“नहीं… नहीं।मुझे नहीं जाना है,तुम्हारे ऑटो में।”

“पर क्यों? मैं तो चलने को तैयार हूं। और फिर, मीटर से ही चलूंगा। “- ऑटो वाले ने कनक से कहा। लेकिन कनक ने उसकी बातों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा।

तभी दूसरी लड़की रोशनी ऑटो के पास आकर ऑटो वाले से पूछने लगी – कमला नगर का भाड़ा क्या है?

जी मैम, डेड सो रुपए…।

 रोशनी ने कनक से पूछा – “बहन, इस ऑटो से तू तो नहीं जा रही है ना ? फिर मैं चली जाती हूं।” 

कनक ने कहा – यार, मुझे ये ऑटोवाला सही नहीं लग रहा है। वैसे तुझे भी घर पहुंचते-पहुंचते 7:00 से 7:30 बज जाएंगे।बहुत अंधेरा हो जाएगा।

पर  बहन,मुझे तो कोई परेशानी नजर नहीं आ रही। – रोशनी ने कनक को जवाब दिया।  

” रोशनी, यू हर्ड, ही सेड मैम…नो बहन जी,दीदी,बेटी…एंड ही इज वियरिंग जींस एंड टीशर्ट।सो,हाउ कैन यू ट्रस्ट हिम?”

“मैम,आई नो इंगलिश।आई नो ह्वाट यू आर सेयिंग। यह ऑटो मेरे पापा चलाते हैं।कई दिनों से वे बीमार है। हॉस्पिटल,दवाई,घर का खर्च निकल जाएगा, ये सोचकर मैं आटो चला रहा हूँ।आप केवल इसलिए नहीं जा रहे हैं क्योंकि मैंने जींस और टीशर्ट पहन रखी है और आपको बहन, बेटी या दीदी की बजाए मैम कहा।मैम,ये सब तो सिर्फ शब्द हैं। इससे ज्यादा जरूरी है नजरों का सही होना।शब्दों पर नहीं जाना चाहिए, नजरों को पढ़ने की कोशिश और उसकी कला सीखने की  जरूरत है।शब्दों से नीयत का पता भी तो नहीं चलता है…।”- ऑटो वाले ने कनक की आंख से आँख मिलाकर कहा। कनक और रोशनी दोनों बुत बनकर उसकी बातें सुनती रहीं।आटो वाले के प्रति उनकी धारणा अब पूरी तरह बदल चुकी थी।

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