पिछले कई वर्षो से रत्ना और राजेश की तू-तू, मै-मै पर अचानक विराम लग गया आये दिन विवाद, राजेश को रत्ना से कुछ न कुछ शिकायत रहती ही थी जिनकी परस्परआंख -आंख नही बनती वे अब हाथो मे हाथ डाले घूमते नजर आ रहे थे वाणी मे भी मधुरता और एक दूसरे के प्रति आदर के भाव , यह देख अडोसी-पड़ोसी मोहल्ले वाले आश्चर्च चकित थे कथित दम्पत्ति मे आये इस अभूतपूर्व परिवर्तन को जानने की जिज्ञासा हर किसी को थी अंततः रत्ना की सहेली लक्ष्मी ने पूछ ही लिया-
‘क्या बात है रत्ना ! जब से तू मायके से आई है तब से राजेश जीजाजी बिल्कुल बदल गये है एकदम सीधे ही नही चलते बल्कि तेरी पूछ परख भी बहुत कर रहे हैं तू मायके से ऐसा कौन सा जादुई चिराग लेकर आई है मुझे भी बता , मै भी दिन भर इनकी खीच-तान और टोका-टाकी से बहुत परेशान हूँ ।’
रत्ना ने हंसते हुए कहा-
‘ वो जादुई चिराग तुझे मिलने मे अभी समय लगेगा ‘
आश्चर्य मिश्रित मुद्रा मे लक्ष्मी के नयन पसर गये मुंहसे बरबस ही निकल पड़ा-
‘ क्यो ?’
‘ क्योकि ! अकेले घर मे क्या करते , आनन फानन में वे भी चले गये अपने चिराग के घर रहने और चिराग तले अंधेरा, तेरा चिराग अभी कुवांरा है ‘
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