Pataakhe hindi story: दीपावली के आस पास राघव अपने घर से बहार निकलना एक दम बंद कर देता था। अपने दोस्तों से मिलना जुलना भी कम कर देता था। इस बार उसकी माँ ने उससे पूछ ही लिया ”क्या बात है राघव तुम दीवाली के समय घर से बहार क्यों नहीं निकलते, मैं देखती हूँ तुम अपने दोस्तों में खेलना भी पसंद नहीं करते। क्या बात है क्या तुम्हें बाजार की रौनक अच्छी नहीं लगती।”
राघव बोला ”माँ बाजार की रौनक तो अच्छी लगती है किन्तु अपनी दशा उस बाजार में अच्छी नहीं लगती। बाजार देखने वालों के लिए नहीं खरीदने वालों के लिए सजते हैं और तू जानती है की हमारी खरीदने की हालत कैसी है। गलती से बापू से दो वर्ष पूर्व अपने दोस्त की देखा देखी एक बन्दूक मांग ली थी। बापू की लाचारी की फूलजड़ी से मेरी इच्छाओं में से तो चिंगारी निकली किन्तु बन्दूक मुझे नहीं मिली दोस्त लोग पटाखे अपनी खुश के लिए बजाते हैं या मुझे चिढ़ाने के लिए मैं यह समझ ही नहीं पाता हूँ इस लिए मैं घर में रहता हूँ।” माँ राघव की बात सुन कर बुझ सी गई। तभी बहार एक तेज धमाका हुआ राघव की माँ सोचने लगी ये आवाज किसी की दौलत की है या किसी की मजबूरी कानों में गूंजी है।
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