नदी के किनारे छोटे छोटे कंकडों को लेकर फिर नदी में फेकना और उनकी डुबुक डुबुक लहराती कई जगह कूदती चाल देखना ये भी अपने आप मे इंतज़ार का समय बिताने का एक कस्बिये साधन है। रोहित आज अपनी प्रेमिका सुधा का इंतज़ार ऐसे ही कर रहा ।
तय किये गए उचित समय पर रोहित नदी के किनारे पहुँच गया परन्तु उसे पता था हमेशा की तरह सुधा आज भी देरी से आएगी और फिर कोई न कोई बहाना बना कर उसको मना लेगी। करीब आधे घण्टे के बाद सुधा आयी और आते ही माफ़ी माँगने लगी क्योंकि उसे पता था रोहित गुस्सा होगा । हमेशा की तरह उसकी मुस्कुराहट की रोहित के गुस्से पर विजय हुई।
दोनों साथ बैठे रहे और नदी के झिलमिलाते पानी मे आती लहरों की तरह बातें भी चलती रही। दोनों ने अपनी मोहब्बत की हस्ताक्षर पास बने खण्डहर की दिवालो पर दिए हैं जिस पर उनके नाम एक दिल मे लिखे हुए हैं। शाम होने का समय आ गया और सुधा ने अचानक कहा,”हटो!मुझे घर जाना वरना मम्मी तो आज मार ही डालेंगी वैसे तुम्हारे साथ बैठे बैठे वक़्त का अंदाज़ा नहीं लगता”।
रोहित ने बहुत रोकने की कोशिश की लेकिन वह असफल रहा दोनों ने एक दूसरे को विदा चुम्बन दिया है दोनों घर चले गए।
करीब दो साल पहले कॉलेज की कैंटीन से शुरू हुई ये प्रेम कहानी न जाने किस मोड़ तक चलेगी लेकिन अनजानी मंजिल की तलाश में दो मुसाफिर चले जा रहे। दोनों एक दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं।
रोहित और सुधा की प्रेम कहानी पूरे कॉलेज को पता है। रोहित मिडिल क्लास फैमिली का लड़का है और सुधा कस्बे के सबसे मानिंद व्यक्ति की इकलौती पुत्री हैं।
समय की अपनी गति होती और किस्मत की अपनी एक मर्ज़ी जिसके सामने हर कोई विवश होता है । हर कस्बाई क्षेत्र की तरह अमीर गरीब, जाति पांति ,ऊंच नीच की दीवाल यहां युगों से चली आ रही जिसे दो अनजान मुसाफिर नहीं गिरा पाए और इस दीवार से न जाने पहले कितने प्रेमी प्रेमिका अलग किये गए और ये दोनों भी आज अलग किये जा रहे।
सुधा के पिता जी ने उसकी शादी अपनी हैसियत के एक परिवार में कर दी और रोहित इस गम को बर्दाश्त न कर सका उसने गांव छोड़ दिया और कहाँ गया ये किसी को पता नहीं चला। कुछ लोग कहते उसके परिवार वालों ने उसे शहर में भेज दिया तो कोई कहता कोई घटना घट गई ।
आज इस घटना को पूरे 10 वर्ष बीत गए। सुधा आज एक बच्चे की माँ है और अपनी ज़िंदगी मे खुश है क्योंकि उसने हालातो से समझौता किया था और वह उस पर कायम है। उसका पति सुरेश उसे बहुत प्यार करता है ।
नदी के किनारे अब सुंदर घाट का निर्माण हो गया है जहाँ पूजा पाठ के साथ शुभ अवसरों का नहान होता हैं। पास के सारे खण्डहर की मरम्मत हो गयी है और नए भी विश्रामालय बना दिये गए जहां लोग ठहरते हैं।
अब उस किनारे कोई जोड़ा कंकर से न खेल सकता है न ही कोई प्रेमिका अपने प्रेमी के वक्ष में सिमट कर बैठ सकती है।
कस्बा अब युवा होकर शहर बनने की होड़ में है।अब तो होटल और रेस्टोरेंट में मुलाकातें होती हैं।
लता आज अपने मायके अपने परिवार के साथ आई है। उसका पति बोला चलो नदी की तरफ घूम आते वैसे मैं डुबकी भी लगा लूंगा क्योंकि मैंने कभी नदी में स्नान नहीं किया है। कहते है ये छोटी नदी सीधे गंगा में मिलती तो इसका जल की उतना ही पवित्र हो गया है।
सब नदी के घाट पर जाते और सुधा वही बने एक विश्रामालय में बैठ जाती और उसका पति नहाने चला जाता। वो स्नानआदि कर जब वापस आता तभी उसकी नज़र विश्रामालय की दीवाल पर पड़ती जहाँ दिल में सुधा और रोहित लिखा रहता।
वह कहता,”अरे वाहः! सुधा ये देखो किसी प्रेमी जोड़े ने यहां दीवाल पर अपने नाम लिखे। ये तो प्रेम की दीवार हो गयी । भगवान उस जोड़ो को हमेशा खुश रखे।”
सुधा उस लिखे हुए नाम को देखती और 10 साल के अतीत में अचानक लौट जाती और मौन होकर हां में सर हिलाती।
उसका पति आगे बढ़ जाता और वो उस पर हाथ फेरते हुए चल देती।
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