Barpheelee Aag Hindi Kahani: भारती मैम बारहवीं कक्षा के बच्चों को पढ़ा रही थी कि हिमालय का विराट वैभव, अद्भुत विस्तार और दिव्यता बहुत ही अनूठी है। पहाड़ों की शांत सुबह, उज्ज्वल श्वेत चादर ओढ़े पर्वत, चीड़ और देवदार के लंबे-लंबे वृक्ष साधकों की तरह मौन साधे खड़े रहते हैं। वृक्षों से छन कर आती सूर्य की किरणें प्रिज्म की भांति सतरंगी कोण बनाती हैं। हरा-भरा प्राकृतिक सौंदर्य, झरनों की सरसराहट, पक्षियों का कलरव और ठंडी हवा का सांय-सांय करते अलकों को छूकर गुजरना ऐसा लगता है मानो प्रेमी छेड़छाड़ कर रहा हो। वहाँ का अनुपम सौंदर्य हमें जीवनभर युवा प्रेमी बने रहने के लिए प्रेरित करता है। वहाँ के लम्बे-लम्बे पेड़, ऊँची-ऊँची विशाल पर्वत श्रृंखलाएँ हमेशा अडिग पहरेदारों की तरह मुस्तैदी से हमारी रक्षा करती हैं। उन वादियों का सौंदर्य हमारे तन-मन को हर लेता है। इसी कारण कश्मीर को ‘धरती का स्वर्ग’ कहा जाता है। भारती मैम अपनी लय और कल्पना में डूबती जा रही थी। अचानक मैम का ध्यान गंभीर मौन में अनमनी-सी बैठी शिवानी की तरफ गया।
“शिवानी बेटा! तू सुन-समझ भी रही है…मैं क्या कह रही हूँ ?” शिवानी के कंधे को छूते हुए मैम ने पूछा।
“जी मैम जी, एक-एक शब्द सुन भी रही हूँ और समझ भी रही हूँ। पर मैं आपकी बातों से सहमत नहीं हूंँ।” शिवानी ने अपना मौन मुखर किया।
“क्यों बेटा! तूने देखा है हिमालय के सौंदर्य को। तुम ऐसा कैसे कह सकती हो…?” मैम ने आश्चर्य से पूछा।
“मैम जी! उसी हिमालय ने मेरी सहेली के पिता को उनसे छीन लिया। मैंने उसके दर्द को महसूस किया है।” उठते हुए शिवानी ने उत्तर दिया।
शिवानी की यह अनुभूति इतनी गहन थी कि सहेली की पीड़ा अब उसकी अपनी चेतना में उतर आयी थी।
“माफ करना मैम, जिसे आप स्वर्ग कह रही हो वह नर्क से भी बढ़कर है। उसी हिमालय ने मासूम लड़की को अनाथ, पत्नी को विधवा, माँ को निपुती और एक बहन को अपाहिज बना दिया….।” पसीने से तर गुस्से में तमतमाई मुट्ठीयाँ ताने शिवानी बोलती जा रही थी।आश्चर्यचकित मैम शिवानी का मुँह ताकती रह गई।
“वहां की बर्फ प्राण हर लेती है, कोई पहरेदारी ही नहीं करता वहाँ। जर्रा-जर्रा सैनिकों के खून का प्यासा है।” कहते हुए शिवानी सुबकने लगी।
“शिवानी, क्या बोल रही हो बेटा?” सहमी-सी मैम ने शिवानी से पूछा।
“जी मैम जी!…उन वादियों के सन्नाटे में बंदूकों की गोलियाँ गूंजती हैं। वहाँ का वातावरण रहस्य और रोमांच से नहीं भय, आतंक और दहशत से भरा है।” काँपती हुई आवाज में शिवानी ने कहा।
“शिवानी बेटा! शांत हो जाओ, प्लीज…।” मैम ने सिर पुचकारते हुए बैठाना चाहा।
“मैम जी! अभी दस दिन भी नहीं हुए, मेरी सहेली के पापा और उनके दस साथी उसी बर्फ में रुई के फावों की भांति चिंदी-चिंदी उड़ गए….।” कहते-कहते शिवानी की आँखें और गला भर आए। वह बिलखती हुई धड़ाम से नीचे बैठ गई। अब मैम किस आधार पर शिवानी को झुठलाए।
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