पड़ोसी चन्दा के आँगन में खेल रहे बच्चों के शोर को देख उसके चेहरे पर कई दिनों बाद हल्की सी मुस्कुराहट आई और बच्चों को अपने बरामदे से बैठे – बैठे निहारने लगी। कुछ समय पहले की ही बात है जब इन्हीं बच्चों के साथ उसका जग्गू भी खेलता था। लेकिन मौत के सिकंजे में उसका एकलौता बेटा आ गया था और कम समय में ही ममता की गोद सूनी हो गयी। पीलिया रोग होने से जग्गू को डॉक्टर लोग बचा नहीं सके। बच्चे लुका छिपी का खेल तो कभी आँख मिचौली खेल रहे थे। उससे अब और रहा नहीं गया, आँसुओ से भीगता चेहरा लिए वह अन्दर चली जाती है । घर में सिवा पति करण के अलावा कोई नहीं था। एक बाप कैसे भी अपने आपको संभाल सकता है मगर माँ की ममता को संभालना बहुत मुश्किल है। ‘’क्यों रो रही हो देवकी ?कितनी बार कहा कि अभी कुछ दिन घर के बाहर मत निकला करो, लेकिन तुम हो कि जज्ब़ाती होकर खुद को तकलीफ़ दे रही हो।‘’ वह अपनी सिसकियों को रोक नहीं पा रही थी और संतान सुख के लिए तरसती हुई कहने लगी – ‘’ कैसे रोकूँ अपने आपको, ईश्वर का यह कैसा न्याय कि उसने मेरी गोद सूनी कर दी, आप मर्द लोगों को कुछ फर्क नहीं पड़ता लेकिन माँ की ममता को फर्क पड़ता है।‘’

वह दोनों एक साथ फुट फुटकर रोने लग जाते है और संतान सुख से वंचित होते हुये अनाथ बच्चों को ममता देने, खिलौने देने की लालसा देते हुए अपने गमों से समझौता कर लेते हैं।

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