Sukh Ke Maayane : अखबार में “सातवें वेतन आयोग” की रिपोर्ट लागू होने की खबर पढ़ मैं रोमांचित हो उठा ।ऑफिस जल्द पहुँच जाने की आकुलता बढ़ गयी ।आज ऑफिस का पूरा दिन सहकर्मियों के साथ वेतन, टी.ए.,डी.ए. आदि में वृद्धि के हिसाब-किताब में बीतना था ।इस परिचर्चा के बीच-बीच मे कोल्डड्रिंक, पैटीज का अतिरिक्त दौर चलना तो लाजमी था ।जल्दी-जल्दी तैयार हो निकला, तो मेरा मन-मयूर नाच रहा था ।आकाश में भी खूब बदली छायी थी ।हल्की बूंदाबांदी हो रही थी ।आधे रास्ते मे था कि बारिश बहुत तेज हो गयी ।मजबूरन एक बंद पड़े मकान के बरामदे में शरण लेनी पड़ी ।रुमाल से कोट पर पड़ी बूंदे साफ करते हुए झुंझला उठा मैं…

“…इसी समय बरसना था इसको…न कुछ देर पहले न कुछ देर बाद…अब चाहे जो भी हो ,इसी महीने कार खरीद कर ही दम लूँगा…”  

कुछ संयत होकर इधर-उधर देखा , तो वहाँ एक अधेड़ किसाननुमा पुरुष पहले से उपस्थित था ।मैली-कुचली धोती व कुर्ता और गले मे पड़ा मटमैला अंगौछा ।उसके पैर में पड़ी हवाई चप्पल के आगे के टूटे हिस्से को पतली रस्सी से बांध कर किसी तरह अँगूठा फ़साने लायक बना दिया गया था ।पर उसकी अधपकी दाढ़ियों से भरे गेहुआ चेहरे पर जो अभूतपूर्व सुख व संतोष व्याप्त था,वो अपने आसपास विचरने वाले आर्थिक रूप से बेहद सुदृढ़ चेहरे पर भी कभी ढूढे नही मिलता ।

मुझे देख वह परिचितों के अंदाज में मुस्कराया…
“…साहेब..आपव फसी गयव बरखा मा…”मुझे अपनी ओर ताकता देख वह बोल पड़ा ।
“…मुला हमार तव आज केर दिन बहुतें नीक जात हय…भोर मा उठेन तव पेट मा बड़ा पीरा रहा…खाद डाल जाय कै हिम्मत नाही परत रहा…जीव पोड़ कय केर निकरेंन,तव खेतन मा धान केर लंबी-लंबी बाली बयार मा झूमत देख मन निहाल होय गवा…पेट कय दरद एकदम से छू-मंतर होय गवा….”

उसकी बातें सुन मैं मुस्कुरा उठा ।मेरी दिलचस्पी देख उसने बात आगे बढ़ाई,
“…साहेब,खेतन मा पानी सीचय वास्ते पांच सौ कय जुगाड़ कय के डीज़ल लेय निकरेन रहा…तव बीचे मा इन्दर देवता कय किरिपा होय गवा…संसार बदे ई पानी बरसत हय, पर हमरे बदे तव ई रुपया बरसत है साहेब…”
    श्रम,अभाव व संतोष की उस त्रिवेणी को बस अपलक ताकता रह गया मै ।उसकी खुशी के आगे अपने हिस्से का सुख मुझे उस क्षण बेहद बेमानी लगने लगा था ।

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