Likhe jo khat tujhe Hindi Story: नेहा एक जरूरी फाइल अपनी अलमारी में ढूंढ रही थी।
” कहां चली गई? यहीं तो रखी थी , जब जरूरत हो तो मिलती ही नहीं ! ” उसने झुंझलाहट के साथ सोचा।
तभी उसके कॉलेज के दिनों की डायरी गिर गई, व एक खत खिसक कर बाहर झांकने लगा । ख़त न हो कर जैसे वह यादों की पगडंडी थी जिस पर चल वह
सीधे पहुंच गई अपने कालेज के दिनों में…..
कैसी दीवानगी हो गई थी उसे ! अपने सर प्रदीप पर, उनका सुदर्शन व्यक्तित्व व विषय पर पकड़ उसको सम्मोहित करता गया।
फाइनल एग्जाम्स को कुछ ही दिन शेष थे और नेहा अब अपने मन की बात सर को बता देना चाहती थी तो एक पत्र लिख डाला।
जैसे ही सर एकांत में मिले नेहा पहुंच गई, ” सर मुझे आप बहुत अच्छे लगते हैं “।
” हां ,हां नेहा! मुझे भी तुम बहुत अच्छी लगती हो , तुम्हारी मुस्कुराहट, मुझे मेरी 2 साल की बेटी की याद दिलाती है, मुझे तुम अपनी बिटिया जैसी ही दिखती हो ” ।
अब वह समझती है क्यों सर ने जानबूझकर छेड़ी थी वह बात…… इसके बाद नेहा की हिम्मत नहीं हुई उन्हें पत्र देने की और वह पत्र डायरी में ही रह गया।
शुक्र है ! नेहा ने गहरी सांस ली और मन ही मन बुदबुदाई
उस दिन सर ने एक बांध तोड़ती नदी को उचित मोड़ दे दिया ।
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