साहित्य विमर्ष दलित
विकसित होती दलित कहानियां कहानीपन और किस्सागोई की स्वतंत्र और देशज रूप धारण करने लगती हैं। इसी स्थिति में पहुंचकर दलित कहानियां अपने युगबोध की प्रामाणिक अभिव्यक्ति बन जाती हैं , और उदघोष करती हैं कि अभिव्यक्ति मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है।
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