Balaatkaar : चौबीस पच्चीस साल की युवती रोशनी पुलिस स्टेशन के गेट पर एक अनिर्णय और असमंजस की स्थिति में खड़ी थी।कभी एक कदम अंदर की ओर बढ़ाती लेकिन अगले ही पल पुनः उस कदम को पीछे कर लेती।
उसकी इस मनोदशा को उसका मस्तिष्क तुरंत ताड़ गया,”क्या हुआ? इतने जोश में निकल कर आईं थी।सब जोश ठंडा पड़ गया थाने तक आते आते।”
“नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।मैं कुछ आगे पीछे की ऊँच नीच के बारे में सोच रही हूँ।”
“कमाल है, इसमें सोचना क्या है? बलात्कार हुआ है तुम्हारे साथ।”
तभी दिल बीच में बोल पड़ा,”क्यों जी, क्या यह पहली बार हुआ है ये बलात्कार?”
“नहीं भाई ऐसी बात नहीं है, तुम्हारी बात में भी थोड़ा दम तो है लेकिन पहले जो दो बार बलात्कार हुआ था, उसमें और इस बार के बलात्कार में बहुत फ़र्क़ है।”
“कैसा फ़र्क़ भाई, बलात्कार तो बलात्कार ही होता है।”
“तुम नहीं समझोगे? पहली बार जब बलात्कार हुआ था, ये दस साल की थीं। गाँव के खेत में एक अज्ञात लड़के ने ऐसा किया था। दूसरी बार जब शहर में दसवीं कक्षा की परीक्षा देने गई थीं तब एक अपरिचित शिक्षक ने ऐसा किया था। पहले जो कुछ हुआ अजनबी लोगों ने किया था।कोई पता ठिकाना ज्ञात नहीं था| लेकिन यह तो परिचित मित्र था।सहकर्मी था| मित्र क्या प्रेमी कहो। पिछले एक साल से प्रेम के गीत गुनगुना रहा था।”
“इससे तो यही प्रमाणित होगा कि सब कुछ मर्जी से हुआ।”
“अरे नहीं भाई, उसने धोखे से जन्म दिन मनाने के बहाने बुलाया था और यह सब कर दिया।”
“तो क्या जन्म दिन नहीं मनाया।”
“उसने कहा कि यह भी तो सेलीब्रेशन ही है।”
“अच्छा मेरे भाई एक बात बताओ, तुम तो बहुत ज्ञानी हो, जब पहले दो बार बलात्कार हुआ था तब तुमने थाने जाने की सलाह क्यों नहीं दी थी?”
“उस समय तो नाबालिग थी ना और फिर परिवार वालों ने डरा दिया था कि बदनामी होगी।”
“तो क्या अब बदनामी नहीं होगी।”
“अब तो उस लक्ष्मण रेखा को पार कर लिया है।”
“क्या मतलब? बात कुछ गले नहीं उतरी?”
“अरे यार समझा कर, अब ये अपने शहर से, परिवार से दूर हैं, बालिग हैं और अपने पैरों पर खड़ी हैं।सब कुछ अकेले झेलने को तैयार हैं।”
लड़की दिल और दिमाग की इस ऊबाऊ बहस से उकता गई और उसके कदम थाने की चार दी वारी के अंदर बढ़ गये।
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