Riwaj Hindi Kahani: मैडम सविता कक्षा में पढा रही थी। पाठ का नाम था – सावित्रीबाई फुले। सविता मैडम ने पढ़ाते हुए बताया कि सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षित करने के लिये समाज के ठेकेदारों के घोर अत्याचार सहे। एक छात्रा लता अपने स्थान पर खड़ी होकर बोली – मैडम जी, क्या पहले लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता था ? सविता मैडम ने कहा – हाँ बेटा, पहले महिलाओं को घर की चार दिवारी में ही रहना होता था। तभी एक अन्य छात्रा बोली – फिर तो उस समय लड़कियों की मौज थी, ना तो स्कूल और ना ही कोई होम वर्क करने का झंझट। इतना सुनते ही कक्षा में हंसी का फव्वारा फूट पड़ा। सभी को शांत करते हुए सविता मैडम ने कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा – सावित्रीबाई फुले ने हार नहीं मानी और सभी विपदाओं और अपमानों को सहते हुए उन्होंने नारी को शिक्षित कर सदियों की गुलामी से आजाद कराने का अनूठा प्रयास किया। माँ सावित्रीबाई फुले ही हमारे देश की प्रथम महिला शिक्षिका बनी। पाठ समाप्त हो चुका था, तभी स्कूल की छुट्टी की घण्टी बज गई। मैडम ने कहा कि सब बच्चे इस पाठ को पुनः घर से पढ़कर आएंगे।
बच्चे अपने अपने घर जाने लगे। स्कूल में आधुनिक दिखाई देने वाली सविता मैडम भी उसी गाँव की थी, छुट्टी के बाद जब वह स्कूल से निकलने लगी तो मैडम जी ने अपना सारा मुंह घूंघट निकालकर ढक लिया तो एक छात्रा ने उत्सुकतावश पूछा – मैम, माँ सावित्रीबाई फुले ने जब नारी की सदियों की गुलामी की बेड़ियों को काट डाला था तो फिर आप इतना बड़ा घूंघट करके क्यों चल रही हो ? मैडम सविता इस अकल्पनीय प्रश्न को सुनकर सकपका सी गई, मगर तभी अपने आप को संयत करके नपे तुले शब्दों में बोली – बेटा, ये तो अपना रिवाज है, जो सदियों से चला आ रहा है। वह छात्रा पुनः बोली – मैम, लेकिन माँ सावित्रीबाई फुले ने तो इन्ही रिवाजों रूपी सामाजिक बुराइयों का खुद डटकर सामना किया और कभी भी हार नहीं मानी, जिस कारण ही आज भी उनकी जीवनी हमें पढ़ाई जाती है।
मैडम सविता के पास उस मासूम बच्ची के ज्वलंत प्रश्नों का जबाब नहीं था, लेकिन तभी मैडम सविता का घर आ गया और वो बिना जबाब दिए ही लपककर अपने घर में चली गई। छात्रा मैडम को घर के अंदर तक जाते हुए देखती रह गई।
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