Phool Bangala Hindi kahani: सोहन के बंगलें में अनगिनत गमले रखे हुए थे।उन सब में एक से बढ़कर एक पौधे लगे हुए थे।उन पौधों पर विभिन्न किस्म के सुंदर-सुंदर फूल सभी को अपनी ओर आकर्षित करते।सोहन की मेहनत और लगन साफ-साफ दिखाई दे रही थी।वह दफ्तर जाने से पहले और आने के बाद उनको ही संवारने में लग जाता।
सच पूछो तो बारह महीने ही उसके बंगले में बसंत ऋतु छाई रहती।
एक दिन पार्क में सोहन के पिताजी बैठे थे।उन्हें देख एक सज्जन ने पूछा, “टांक साहब आप तो फूल बंगले वाले के पिताजी हैं…शायद।” “ठीक पहचाना..।” पिताजी ने जवाब दिया। सज्जन बोले,”आपका बंगला क्या है साहब हैंगिंग गार्डन है… हैंगिंग गार्डन.. या यूं कहूं कि दिल्ली का मुगल गार्डन है।” “आप ठीक कह रहे हैं श्रीमान..।” सोहन के पिताजी ने जवाब दिया।
सज्जन ने फिर पूछा,”आपका बेटा पेड़-पौधों से इतना प्यार करता हैं..तो वो आपसे और अपने बच्चों से कितना प्यार करता होंगा।” पिताजी की आंखों से आंसू छलक पड़े। “क्या हुआ भाई साहब…क्या मैंने कुछ ग़लत कह दिया?” सज्जन ने आश्चर्य से पूछा।
“जी नहीं भाई.. दरअसल बात यह है कि सोहन को भगवान ने औलाद दी ही नहीं।बस वह उन पौधों को ही अपनी औलाद समझता है।उनका खिलना ही उसको बच्चों जैसा लगता है।” पिताजी ने बताया।
“फिर तो उसे बच्चे गोद ले लेने चाहिए।” सज्जन ने सलाह दी। “किस-किस को गोद ले बेचारा…।”पिताजी ने गहरी सांस लेते हुए कहा। “किस..किसको मतलब ?” फिर सवाल किया। पिताजी बोले,”बेचारे के माता-पिता एक रेल दुर्घटना में मारे गये थे… मां-बाप की कमी को पूरा करने के लिए मुझे और मेरी पत्नी को मां-बाप बनाकर घर ले आया।क्योंकि उस दुर्घटना में मेरे बहू-बेटा भी चल बसे थे।” सज्जन के पास शायद अब कोई सवाल नही बचा था पूछने के लिए। सिर्फ उन्होंने इतना कहा, “आज भी ज़मीन पर फ़रिश्ते हैं जिनके दिलों में हमेशा बसंत रहता है।”
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