Naasoor Bhara Pashchaataap: वो बेहद ड़रा हुआ और परेशान था। थोड़ी देर पहले ही बेटी का फोन आया था– “पापा मेरी स्कूटी खराब हो गयी है और यहां बहुत अंधेरा और सुनसान है।” 

हे भगवान! रात के 10 बजे थे, अनहोनी की आशंका से उसके हाथ पैर थर थर कांपने लगे थे। 100 नम्बर ड़ायल करने पर भी–” हां, हां देखते हैं, इतनी रात को लड़की को बाहर क्यों जाने देते हो?”

कहकर फोन काट दिया गया।

बेटी की बताई जगह सब दूर ढूंढ लिया परन्तु वो और उसकी स्कूटी कही दिखाई नहीं दी।दो घंटे गुजर गये। थकहारकर आंखों में आंसू भरकर वो घर की तरफ लौट चला।

तभी उसने देखा– सामने से बेटी और उसके साथ बहुत सी महिलाऐं और लड़कियां चली आ रही है। सबके हाथ में हाॅकी, बल्ला और लठ्ठ थे । बेटी दौड़कर पिताजी से लिपट गयी। 

” पापा इनसे मिलो ये है दुर्गा माई” दुर्गा वाहिनी की संरक्षक।कभी भी कहीं भी कोई लड़की मुसीबत में हो या उन पर कोई विपदा आये– दुर्गावाहिनी की सदस्यों के साथ ये मिनटों में वहां पहुंच जाती है। आपको फोन लगाने के बाद मैंने इनको फोन किया और ये दस मिनट में वहां आ गयी।”

“कुछ गुंड़े अकेली समझकर मेरे टास आ गये थे। दुर्गा मां और इन सबने मारमारकर उन्हें लुहलुहान कर दिया और सबसे माफी मंगवाई।”

वो सफेद साड़ी पहने सफेद बालों वाली महिला को ध्यान से देखने लगा। अचानक उसे 25 साल पहले की घटना याद आ गयी। बरसते पानी सुनसान सड़क पर रात में पेड़ के नीचे खड़ी उस मासूम लड़की से उसने और उसके साथियों ने——- ओह!

उस लड़की को बाद में वहीं पटककर वो सब निकल लिये बाद में बहुत हंगामा, समाचार, कोर्ट, इंटरव्यू लेकिन कुछ समय बाद सब ठंड़ा पड़ गया और रिश्वत देकर वो सब छूट गये।

आज वही दुर्गा मां के रूप में उसके सामने खड़ी थी और आग्नेय नैत्रों से उसे घुर रही थी।

अचानक वो दुर्गा मां के पैरों पर गिर पड़ा और पश्चाताप में फूटफूटकर रो पड़ा।

तभी उसके कानों में बेटी की आवाज सुनाई दी–” दुर्गा मां मैं भी दुर्गावाहिनी की सदस्य बनना चाहती हूं” 

इस बच्ची से फार्म भरवाओ सखियों कहकर दुर्गा मां बिना उसे देखे पलट चुकी थी।

अब उसका अपराध जिंदगी भर नासूर बनकर उसकी आत्मा से रिसता रहेगा।

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