“डॉक्टर साहब ने फीस बढाकर सात सौ रुपये कर दी है।10 दिन में एक बार देखने की!”सड़क पर घूमते रामनिवासजी ने दो व्यक्तियों का वार्तालाप सुना तो चौंक उठे, “ऐं?मेरा बेटा भी तो डॉक्टर है ये तो मैं भूल ही जाता हूँ।वह भी तो देखने की *फीस* लेता है ,मैं यही करूंगा अब!”बड़बड़ाते हुए वे यू.के., में जा बसे अपने डॉक्टर बेटे को याद करने लगे और पास ही की एक बेंच पर बैठकर मोबाइल फोन पर टाइप करने लगे- ऋषि बेटा, मैं भूल गया था कि मेरा बेटा होने के अलावा तू एक फेमस डॉक्टर भी है।खैर ,चल ।ठीक है ,मुझे एक मरीज ही समझ ले।तू मरीजों को देखने की फीस लेता है पर मैं,मैं तुझे ,हाँ तुझे देखने की फीस तुझे ही दूंगा।तेरी फीस सात सौ,नही नौ सौ,नही एक हज़ार भर दूंगा। तेरे खाते में डाल दूंगा।बस,आठ- दस दिन में एक बार ,बस एक बार ,मेरा वीडियो कॉल अटेंड कर लिया कर।उसे काटा मत कर।मुझे अपनी सूरत दिखा दिया कर बेटा।” उन्होंने टाइप किया , डिलीट किया ,फिर टाइप किया फिर…डिलीट…और ऐसा करते- करते उनका हाथ और फोन की स्क्रीन अचानक भीगने लगे, पसीने से ही नही ,आंसूओं से भी।
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