Madad: ” पता नहीं इस देश का क्या होगा । बाढ़ आ जाए, सूखा पड़े ,कोई भी आपदा हो हम मध्यमवर्ग को ही सब भुगतना पड़ता है । ” कृपा शंकर जी ने अपने मोबाइल पर आया मैसेज पढ़ा तो बड़बड़ाने लगे ।

   ” अब क्या हुआ  , क्या फिर से देश दुनिया में कोरोना बढ़ रहा है ? पत्नी ने उनको कुछ कहते सुनकर पूछा ।

 ” तुम फिक्र बहुत करते हो , फिर से कहीं बीपी बढ़ गया 

तो ? “

   ” तुम्हें तो मजाक सूझ रहा है । यह देखो , महंगाई भत्ते पर रोक लग गई । पहले से ही दो दिन की तनख्वाह कट चुकी है ऊपर से यह झटका । सारी मार हम मिडिल क्लास वालों पर ही क्यों पड़ती है हमेशा ? पहले से ही टैक्स के मारे हुए हम लोग आखिर जाएं भी तो कहां ? “

    ” बस इतनी सी बात है । यह मत भूलो कि तुम्हारे इन पैसों से कितने लोगों की मदद होगी । उनको दो जून की रोटी मिल जाए , यह क्या कम बात है ? हमें थोड़ा कम मिल जाएगा तो क्या फर्क पड़ जाएगा । ” पत्नी ने कहा तो कृपा शंकर जी पूरी तरह उखड़ गए ।

   ” तो क्या सब का ठेका हमने ही ले रखा है ? हड्डियां घिसतें है तब जाकर पगार मिलती है हमें । सब लोगों को मिडिल क्लास ही अमीर नजर आती है । ” वे अभी काफी कुछ कहकर भड़ास निकालते इससे पहले ही उनका छह साल का पोता रवि वहां आ पहुंचा ।

    ” इस बार तुम्हें तुम्हारा पॉकेट मनी नहीं मिलेगा । जाओ जाकर खेलो । ” पोते को देखकर वे समझ गए कि वह पॉकेट मनी लेने आया है ।

   ” दादा जी ,मुझे आपसे फिलहाल कुछ नहीं चाहिए ।

मैं तो अपनी गुल्लक लेकर आया हूं ताकि इसमें मेरी पॉकेट मनी के सारे  पड़े हुए ₹3455 आप जाकर सरकार को दे दीजिए । ताकि वह उन लोगों की मदद कर सके जिनके परिवार को एक वक्त का खाना भी मिल पाना मुश्किल हो रहा है । ” रवि उनके हाथों में अपनी गुल्लक थमाते हुए बोला ।

     कृपा शंकर जी निरुत्तर थे । वे अपनी पत्नी के साथ पोते रवि की ओर देखने का साहस भी नहीं जुटा रहे थे जिसका चेहरा अप्रतिम रूप से दमक रहा था ।

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