Pension : संध्या और प्रेरणा दो बहन थी। दोनों खूब ध्यान लगाकर पढ़ाई लिखाई करती थी,साथ ही घर के कामों में भी हाथ बंटाने से नहीं हिचकती थी।लेकिन एक सड़क हादसे में माता पिता के गुज़र जाने के कारण उनपर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा। दोनों के देखभाल और उनकी पढ़ाई लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी अब अवकाश प्राप्त शिक्षक दादाजी पर आन पड़ी। लेकिन दादाजी को मिलने वाले पेंशन से घर खर्च और पढ़ाई-लिखाई खर्च चलाना काफी मुश्किल होने लगा।यह देख एक दिन दोनों दादाजी के पास गई और बोली हम-दोनों ने फैसला किया है कि कल से पढ़ाई लिखाई के बाद हम दोनों बहने आसपास के घरों में ट्यूशन पढ़ाने का काम भी करूगी।इस पर दादाजी नाराज हो गए और बोले तुम लोगों को हमारी बुड्ढी हड्डियों पर भरोसा नहीं है जो ऐसा फैसला हमसे बिना पूछे कर ली। अगर तुम्हें कोई परेशानी है तो कहो।जब-तक मैं जिंदा हूं तुम्हें सोचने की जरूरत नहीं है अभी यह मासूम हाथ कमाने के लिए बने हैं। क्या कहेगा दुनिया जमाना !आकाश प्राप्त शिक्षक राघवेंद्र बाबू की पोतियां घर खर्च चलाने के लिए ट्यूशन पढ़ाने लगी हैं। तुम लोग सिर्फ अपने पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान केंद्रित करो।अभी हमारी बुड्ढी हड्डियों में इतनी ताकत है कि कमाकर तुम लोगों को अच्छी तरह से पढ़ा लिखा सकूंगा।कल से तुम लोग नहीं मैं बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दूंगा।अब से ऐसी बात किये तो मैं नाराज़ हो जाऊंगा।
क्या तुम लोग भी अटल जी की सरकार की तरह बीच राह में धोखा देना चाहती हो! जिस तरह से उन्होंने पुरानी पेंशन व्यवस्था समाप्त कर नई पेंशन का झुनझुना थमा दिया।जिसके कारण आज हम कर्मचारी जिंदगी भर कमाने के बावजूद बुढ़ापे में बेसहारा बन जा रहे हैं। एक तो उन्होंने हमारी बुढ़ापे की लाठी तोड़ दी क्या तुम लोग भी बीच में पढ़ाई लिखाई पर से ध्यान हटाकर हमारे बुढ़ापे की अंतिम सहारा को भी समाप्त करना चाहती हो।दोनों पोतियों ने दादाजी के गले लगकर कही नहीं दादा जी हम अटल जी नहीं हैं जो आपके बुढ़ापे के सहारे को छीन लेंगे हम लोग अपनी पढ़ाई जारी रखेंगे…।
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