Kaun Moorkh : “साला मैं जिंदगी में सदा मूर्ख का मूर्ख ही रहा। मुझे कभी रिश्वत लेने का शऊर नहीं आया। नौकरी में रहते काम करवाने के लिए जो कोई अगर मुझे रिश्वत पेश करता, मुझे उस पर तरस आ जाता, और काम कर देने पर मैं उसके खाली धन्यवाद से खुश हो जाता”, सुखदेव बरसों बाद मिले अपने जिगरी यार जोगिन्दर से दिल खोल कर दिल की बातें साझा कर रहा था, “वर्ना आज मैं भी तुम्हारी तरह…।”

          सुनकर जोगिन्दर हंस पड़ा, “सही कहा। साला मैं भी जिंदगी भर सदा मूर्ख का मूर्ख ही रहा, जो यह सोचता रहा कि रिश्वतखोरी और भ्रष्ट आचरण करके मैं इतना कमा लूँगा कि फिर सारी जिंदगी ऐश ही ऐश करूंगा। कमाया, बहुत कमाया…, और क्या नहीं है आज मेरे पास…, बँगला, गाड़ी, नौकर-चाकर, रुपया-पैसा, जमीन-जायदाद, नाम….। नहीं, नाम नहीं, बदनाम है…। लोग मुझे तिरस्कार की नज़र से देखते हैं। मेरी सारी कमाई को दो नंबर की, हराम की कमाई समझते हैं। मुंह पर तो नहीं, पर पीठ पीछे बहुत कुछ कहते हैं। …वह भी चलो कोई बात नहीं, पर जो मेरा परिवार मेरे साथ नहीं, यह सबसे बड़ी बदकिस्मती है मेरी। पत्नी बिस्तर से जा लगी है, बच्चे विदेश जा बसे हैं, मुझसे उन्हें कोई वास्ता नहीं…, रिश्तेदारों की बात तो खैर जाने दो, यार-दोस्त भी सिर्फ वही रह गए हैं जो स्वार्थी हैं…। अब तो मुझे भी कई बीमारियों ने घेर लिया है, बस दवाइयों के सहारे चल रहा हूँ। तो सोचता हूँ कि यह सब किसके लिए और क्यों किया?”

          फिर रुककर बोला, “और तुम्हारे पास वह सबकुछ है जो मेरे पास नहीं है। तो मेरे दोस्त बताओ, कौन मूर्ख रहा? मैं या तुम?”

“दोनों”, सुखदेव गंभीर मुद्रा में बोला, “तुम, जो करके पछता रहे हो, और मैं, जो न करने पर  पछताने की बात कर रहा हूँ।”

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