“देखो यार तुमसे पहले भी कहा है ,किसी के जाति-धरम पर मत जाया करो”
“और तुम जो दूसरों की जाति पर कमेंट कसते हो वो ?वो क्या है? परसों का दिन भूल गए ?जब जाति की बात तुमने निकाली थी, मैंने नही।”उस दिन बातों- बातों में अचानक किसी के मुख से कुछ आपत्तिजनक शब्द निकले और गरमागरमी बढ़ गई।सबकी आवाजें तेज होने लगीं और जोरदार बहस से मेरा ड्राइंगरूम गूंजने लगा।सभी के चेहरे तमतमाने लगे,दो गुट बन गए, तर्क पर तर्क दिए जाने लगे,मोबाइल पर आंकड़े दिखाए जाने लगे ।सामने मेज़ पर रखी चाय में किसी की दिलचस्पी नही रही,चिल्लाहट के बीच मैंने कई बार चाय पीने के लिये कहा भी पर किसी ने ध्यान नही दिया,गर्मागर्म बहस के बीच मेज पर रखी गर्मागर्म चाय ठंडी होने लगी।
हारकर,विषय बदलने के लिए मैने टीवी चालू कर दिया।एक समाचार चैनल पर भिन्न धर्म वाला एक व्यक्ति हमारे ,हम चारों के धर्म पर अनर्गल टिप्पणी कर रहा था तो कुछ सोचकर मैंने वही चेनल चलने दिया और वॉल्यूम बढा दिया।
उसकी भड़काने वाली भाषा सुनकर सबको जैसे लकवा मार गया।चिल्लाते हुए सब, एकाएक चुप हो गए।कमरे में अब सिर्फ टीवी की आवाज ही सुनाई पड़ रही थी। हमने एक दूसरे को देखा और सबके चेहरे फिर से सुर्ख होने लगे।
पर अब कमरे में हमारे बीच, दो नही , एक ही ‘हम’ था।
मेज पर पड़ी ठंडी होती चाय अब एकाएक गर्म लगने लगी थी और सबके हाथ उसकी ओर बढ़ चुके थे ,इस बार मेरे बिना कहे ।
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