दो लड़के हम उम्र थे, यही कोई बारह-तेरह वर्ष के रहे होंगे। वे सुबह अंधेरे- अंधेरे दो घंटे के किराये की साइकिल लाते और घर-घर अखबार पहुंचाते। नौ बजे तक वे सब्जी बेचने चले आते। दस बजे तक वे सब्जी बेचते उसके बाद वे शाम को सब्जी बेचते दिखाई देते। इस बीच शायद वे किसी के यहां काम पर जाते होंगे।

पालक वे बहुत ही ताजा लाते इसलिए हाथोंहाथ बिक जाता। बच्चे बड़े प्यारे और हंसमुख थे। एक दिन हमने उन्हें बातों ही बातों में हंसते-हंसते पूछ लिया-

” बेटा, तुम्हारे पालक कहां है ?”

उनमें से एक ने बड़ी मासूमियत से जो जवाब दिया वो भीतर तक मन को छू गया। उसने कहा- “आंटी, पालक होते तो हम पालक क्यों बेचते ?”

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