रात्रि के बारह बजे सड़क पर स्ट्रीट लैंप की दुधिया रोशनी फैली हुई थी। शहर में चारों ओर सन्नाटा पसरा था। सड़क पर इक्का-दुक्का लोग दीख रहे थे। ट्रैफिक पुलिस नदारद। ऐसे में मैंने सड़क के किनारे एक वृद्ध दंपति को लोगों से कुछ सहायता मांगते हुए देखा। वृद्ध के एक हाथ में चमड़े का एक बैग और दूसरे हाथ में कागज का एक टुकड़ा था। मैंने यकायक उनके सामने बाइक रोककर पूछा, ” क्या बात है बाबा ? “
उन्होंने तेलुगु में कुछ कहते हुए कागज का एक टुकड़ा हमें दिखाया। मेरी बाइक की पिछली सीट पर बैठा हुआ युवक तेलुगु जानता था।
उसने बताया , ” इसका बेटा इसी शहर में रहता है। इस कागज़ पर उसका नाम और फोन नंबर लिखा हुआ है। ये लोग शाम से ही फोन द्वारा उससे संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं , लेकिन उधर से कोई फोन नहीं उठाता है। “
मैंने अपने फोन के द्वारा उसी नंबर से संपर्क साधने की कोशिश की। नया नंबर देख कर उधर से किसी ने पूछा – ” क्या बात है ?”
मैंने कहा-” भाई , तुम्हारे माता-पिता शाम से ही परेशान हैं । ये लोग तुमसे मिलने के लिए अपने गांव से शहर आए हैं। “
उसने झल्लाते हुए कहा -” तो… ! आप को क्या परेशानी है ? “
मैंने विनम्रता से कहा- भाई ! एक बार आकर इन लोगों से मिल लो । इनसे पूछो तो कि इन्हें क्या परेशानी है ?”
उसने झल्लाते हुए कहा -” आप उनसे कह दें कि वे लोग जहां से आए हैं , वहीं वापस चले जाएं। मेरे पास मिलने के लिए वक्त नहीं है । “
अपनी बात कह कर उसने फोन काट दिया। इसके बाद हम लोग फोन लगाते रहे। कुछ देर तक रिंग होता रहा। थोड़ी देर बाद उसने अपना फोन ऑफ कर दिया। हमने वृद्ध दंपति को समझाया-” बाबा ! आप टेंपो से स्टेशन चले जाइए और कोई ट्रेन पकड़ कर अपने गांव लौट जाइये। आपके बेटे के पास आप से मिलने का वक्त नहीं है। “
हमारी बातें सुनकर वृद्ध ने उस कागज को अपनी जेब में रखते हुए कहा, ” बाबू, वह किसी जरुरी काम में फंसा होगा। अपने काम के बोझ से वह बहुत परेशान रहता है। अपना काम निपटाकर वह जरूर आएगा। हमलोग और कुछ तक यहां उसका इंतज़ार कर लेते हैं। ” वे बेटे के इंतजार में सड़क के किनारे एक शेड के नीचे जा कर बैठ गये। उस सघन रात्रि में बल्ब की धुंधली रोशनी में मैंने देखा कि उनकी आंखों में अब भी एक चमक बाकी थी।
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