Jaake Pair Na Phate Bivaee Vo Kya Jaane Peer Paraee: रोज के ताने सुनकर निधि त्रस्त हो चुकी थी। बांझ शब्द अब उसे चुभता था। परिवार की अन्य औरतों के गोद में नन्हे बच्चों को देखकर वो बेहद दुखी हो जाती।
उसके परिवार में देवरानी की गोद भराई थी। उसे भी अब बच्चा होने वाला था। घर में बहुत धूमधाम और बधाईयों का दौर था।
आये हुए मेहमानों में बड़ी बुआ सास अचानक निधि को पूछ बैठी–
” निधि तुम कब बेटा दे रही हो इस खानदान को”
निधि कुछ कहती तब तक सास बोल पड़ी—-
*ना नौ मन तेल निकलेगा और ना राधा नाचेगी*
निधि की आंखों में आंसूओं की झड़ी लग गयी– सच ही है उसका दर्द कौन समझेगा–
*जाके पैर न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई*
*गोद भराई* की रस्म प्रारम्भ हुई। उसमें पांच सुहागनों को देवरानी की गोद फलों और मेवे से भरनी थी। घर की सभी बहुओं को बुलाया गया परन्तु निधि को छोड़ दिया गया। बिन बच्चे की मां से गोद नहीं भराई जाती।
निधि तो जैसे *खून के आंसू रो पड़ी*
निधि के कानों में सास की आवाज *पिघले सीसे* सी पड़ी—-
भई मेरे राज के घर बेटा हो जाये तो मैं *गंगा नहा लूं*
इतने में राज ने प्रवेश किया। उसकी गोद में एक नवजात शिशु था।
अम्मा निधि को क्यों दोष देती हो।
तुम्हारे *सिक्के मे ही खोट है*,
मैं ही—– कहकर उसने निधि की तरफ देखा और अपने हाथ के शिशु को निधि की गोद में ड़ाल दिया।
” निधि हमने इस बच्चे को गोद ले लिया है।”
सुनो अम्मा,
तुम अब
*चैन की बंशी बजाओ*
*घी के दिये जलाओ*
और *गंगा नहाओ*
और बहू को आशिर्वाद दो—
*दूधो नहाओ पूतो फलो*
तुम्हारे घर पोता आया है।
*फूल से लाल* को अपनी गोद में देखकर निधि को लग रहा था जैसे—- उसकी गोद में *चांद तारे झिलमिला रहे हों*
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