आज उनकी सुहागरात थी ।नववधू की पोशाक में लिपटी रंजना सिकुड़ी सिमटी सी सुहाग सेज पर बैठी पति शेखर की प्रतीक्षा कर रही थी । वह आतुर सी बार-बार दरवाजे की ओर देख रही थी । मन में ना जाने कैसे-कैसे भाव उठ रहे थे । भय मिश्रित प्रसन्नता उसे उद्वेलित कर रही थी ।दिल में अनेक शंकाएं जन्म ले रही थी और इसका एक विशेष कारण यह था कि शेखर ने अभी तक रंजना को देखा नहीं था । शेखर विदेश में था तथा शादी से मात्र 2 दिन पहले ही आया था । सोम लखनऊ जाकर रंजना से मिलना संभव न था । उसके माता-पिता ने ही लड़की पसंद करके फोटो शेखर के पास भिजवा दी थी ।
रंजना सोच रही थी कि फोटो की बात और होती है ।अब पता नहीं वह मुझे पसंद करें या ना करें । यही बातें उसके मन को कुरेद रही थी । तभी दरवाजा खुला और शेखर ने कमरे में प्रवेश किया । रंजना ने झटपट मुंह पर घूंघट डाल लिया । शेखर उसके समीप आकर बैठ गया और बोला —” अरे भई ! इतने दिन तो हमने सब्र कर लिया पर क्या अब भी यह पर्दा हमारे बीच दीवार बना रहेगा । ” यह कहते ही शेखर ने घुंघट उलट दिया । वह एकटक संजना को देखता ही रह गया । वह फोटो से भी कहीं अधिक आकर्षक लग रही थी । उसने रंजना की ठोड़ी पकड़कर चेहरा ऊपर किया और बोला— ” भई ! मैंने तो आंख बंद करके समुद्र में गोता लगाया था पर मेरे हाथ ऐसा अनमोल मोती लगेगा यह तो मैंने सोचा भी न था ।” रंजना के कानों में तो मानो खुशी की हजारों घंटियां बज उठी ।
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