“मम्मी सासु जी की तबियत ठीक नहीं है”
“हाँ बेटा दुबली पतली सी तो हैं,उम्र भी 65 तो होगी ? “
“हाँ इतनी तो है”
” फिर घर पर भी आराम कहाँ मिलता है ? बच्चे को संभालना,कामवालियों से काम करवाना, आसान तो नहींं है,थक जाती होंगी “
“बच्चा इतना छोटा भी नहीं है कि उसे गोदी मे लेकर घूमना पड़ता हो।”
“बेटा ऐसे बच्चे को संभालना तो और भी मुश्किल है,हर समय नजर रखनी पड़ती है वरना चोट खाने का डर बना रहता है “
“जब कामवाली चली जाती है और गुड्डू भी सो जाता है ,तब तो आराम कर सकती हैं पर नही तब अपनी बेटियों से बात करने लगती हैं”
“बेटा हर माँ का बेटी से बात करने का मन करता है”
“हाँ मन करता है तो करें ना,कौन मना करता है ? मेरे आने के बाद भी तो कर सकती हैं “
” पर बेटा मैं तो तुम से तभी बात करती हूँ जब घर में कोई नहीं होता,तेरे पापा के सामने भी नहीं “
“क्यों माँ ?”
“हर बात पर टोका टाकी ,तुमने यह क्यों कहा,वह क्यों कहा ?शायद इसी लिए तेरी सास भी जब अकेली होती हैं तभी बात करना पसंद करती हैं”
” ऐसा कुछ नहींं है मम्मी,आप तो हमेशा उन्हीं की तरफ लेती हो।असलियत तो यह है कि वह हमारे सामने हमारी बुराई नहीं कर सकतीं ।”
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