” रूको!रूको! कहाँ जा रहे हो ? ” – शहर में लगे कर्फ्यू के बीच हाथ में किताब-कॉपियाँ लिए एक बच्चे को सड़क पर जाते देख ड्यूटी पर तैनात सैनिक ने उसे पुकारा।
बच्चा पास आ गया और बड़ी मासूमियत से बोला – ” हाँ अंकल। “
बच्चे के चेहरे पर तनाव का कोई निशान नहीं था। उसे आश्चर्य हुआ कि इतने दहशत भरे माहौल में वह बच्चा इतना निश्चिंत कैसे था !
उसने बच्चे के कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा – ” बेटा, तुम्हें पता है न कि शहर में कर्फ्यू लगा हुआ है ? फिर भी तुम घर से बाहर निकल आए ? “
” मैं…वो… मनीष भैया के यहाँ पढ़ने जा रहा हूँ। रोज सुबह जाता हूँ। ” – बच्चे ने एक घर की ओर इशारा करते हुए कहा।
” हूँ…। ” उसने बच्चे की ओर देखा और उत्सुकतावश उसके हाथ से एक कॉपी लेकर उसके पन्ने पलटने लगा – ” ये तुमने लिखा है ? “
” और नहीं तो क्या ? मैं रोज अपना होमवर्क करता हूँ और मनीष भैया से चेक कराता हूँ। ” – बच्चे ने पूरे आत्मविश्वास से कहा।
” वेरी गुड।वेरी गुड।किस क्लास में पढ़ते हो तुम ? ” – बच्चे की सुंदर हैंडराइटिंग ने उसका मन मोह लिया था। वह उसमें रूचि लेने लगा था।
” क्लास सेवेन। ” – बच्चे ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा।
” हूँ…। क्या नाम है तुम्हारा ? “
” असलम। “
” ओके असलम, तुम्हें पता है न कि पिछले हफ्ते यहाँ क्या हुआ था ? ” – वह वापस मूल बिंदु पर आ गया था।
” हाँ, पता है अंकल।यहाँ इंसान जानवर बन गया था और उसने अहमद चाचा, रजिया आपा, विशाल भैया और गुप्ता अंकल की जान ले ली थी। न जाने कितने घर जला दिए गये…। ” – बच्चे ने बेखौफ अंदाज में बताया, हालांकि बताते हुए उसकी आँखों में आँसू थे।
” तो तुम्हें नहीं लगता कि ऐसे में तुम्हें घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए था ? ” – उसने बच्चे को सचेत करते हुए कहा।
” मैं इन जानवरों को सबक सिखाना चाहता हूँ अंकल। ” – बच्चे ने अपनी आँखें लाल-लाल करते हुए कहा।
” तुम इन्हें सबक सिखाओगे ? मगर कैसे ? ” – उसने प्रतिप्रश्न किया।
” ऐसे…। ” – बच्चे ने अपनी किताबें आसमान की ओर उठाईं और कहने लगा – ” मैं खूब मन लगाकर पढ़ाई करूँगा और आपकी तरह ही देश का एक वफादार सिपाही बनूँगा और, समाज से नफरती-मज़हबी पिल्लुओं का विनाश करूँगा। अपने देश को इंसानों का घर बनाऊँगा।इनसे पूछूँगा कि जब अल्लाह-ईश्वर एक हैं, खून का रंग एक है, मिट्टी-पानी भी एक है, एक ही हवा मेंं हम साँँस लेते हैं, तो फिर हम एक-दूसरे के खून के प्यासे क्यों हैं.. ? पूूूछूूँगा इनसे कि इन्होंने मंंदिरोंं-मस्जिदोंं में माँँस का टुकड़ा फेंंकते हुए तो इंसानों को देेखा, मगर आसमान में मँड़राते उन गिद्धोंं को नहीं देखा…? ” – बच्चे की आँखों में आक्रोश और चिंता के भाव एक साथ उभर आए थे।
” वाह ! क्या बात है बेटे। शाबाश। ” – वह बरबस बोल पड़ा। उसने बच्चे की पीठ थपथपाई और अपनी फौजी टोपी उतारकर उसे पहनाते हुए एक जोरदार सैल्यूट दिया। असलम खुश हो गया।
शहर पर शाम का अँधियारा गहराने लगा था।मगर निराशा के घटाटोप अँधेरे को चीरती हुई अब उम्मीद की एक किरण भी दिखाई देने लगी थी…।
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