दो गहरे मित्र । दोनों नामी आईटी कंपनी में सेवारत । दोनों किसी भी कठिन काम या समस्‍या का समाधान- निदान आपसी विचार- विमर्श से, हमेशा सही से करते । स्‍वयं तो संतुष्‍ट तो होते ही, अपने से उच्‍च अधिकारियों की प्रशंसा के पात्र बनते । प्रसन्‍न होते ।

वार्षिक मूल्‍यांकन पर जब दोनों को रेटिंग मिला, तो एक बहुत खुश था । जबकि दूसरा नाखुश सा मायूस था । एक को एक्‍सेप्‍शनल यानी असाधारण, तो दूसरे को वेरी गुड मिला था । हालांकि वेरी गुड भी कोई बुरा रेटिंग नहीं था । लेकिन दोनों के वेतनवृद्धि में बहुत अंतर आ गया था । उनके पे बेंड़ बदल गए थे । वेरी गुड रेटिंग वाला मित्र, पे बेंड़ में दूसरे से पिछड़ गया था ।

उनके पे बेंड़ क्‍या बदले, दोनों के कार्य, व्‍यवहार और ड्यूटी में भी परिवर्तन दिखना शुरू हो गया था । वेरी गुड रेटिंग वाले को अब एक्‍सेप्‍शनल रेटिंग वाले मित्र को अपने प्रतिदिन के कार्य की रिपोर्ट करनी पड़ रही थी । इस बदलाव से उसका मन  जल- भुन कर खाक हो जाता था । उनकी मित्रता कब खटाई में पड़ गई, दोनों इस तथ्‍य से जैसे अनभिज्ञ थे । वेरी गुड रेटिंग वाला मित्र अब जान-बूझकर अपने काम को ठीक से नहीं करता था । दूसरा मित्र अपेक्षित काम नहीं करा पाने के कारण, अपने से ऊपर के अधिकारियों की डांट खाने लगा था ।

एक्‍सेप्‍शनल रेटिंग वाले मित्र से उसके बॉस ने एक दिन पूछा, “तुम… रमण से ठीक से काम नहीं ले पा रहे हो … क्‍या बात है ?”  

“ वो मेरा अभिन्‍न मित्र है  । इसलिए… मैं उसको बोल नहीं पाता हूं !”  उसने अपने मन की बात बता दी थी ।

“ तो फिर… मेरी डांट खाया करो रोज  ।  यदि डांट नहीं खानी है… तो अपने मित्र को डांटना शुरू कर दो ।”  बॉस ने उसे आजमाए हुए नुस्‍खे को अपनाने की सलाह दी । अब रमण यानी वेरी गुड़ रेटिंग वाला मित्र रोज अपना काम सही और समय से करने लगा था । उसे अपने किसी समय के घनिष्‍ट मित्र से हर दिन डांट खाते हुए शर्मसार होना अच्‍छा नहीं लगता था । 

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