“अब क्या हुआ ! क्यूं मुंह फुलाये बैठी हो !”
रितेश ने ऑफिस से आते ही पूछा ।
“बात मत करो मुझसे ! हर बार तुम्हारा यही रहता है ।”
रीमा तुनक कर बोली ।
“पर बात तो पता चले कुछ !”
“इस साल फिर तुम मेरे लिये गिफ्ट लाना भूल गये न !”
“अरे हाँ… आज तो तुम्हारा जन्मदिन है ना ! काम ही इतना था ऑफिस मे कि… !”
“हर साल तुम्हारा यही बहाना… कुछ तो नया बोल दिया करो !”
“नया ! चलो ठीक है अगले साल नया बहाना खोज लाऊंगा, अभी तो चाय पिला दो अपने हाथ से !”
“अपने हाथ से ही बनाऊंगी, तुमने कौन से नौकर रख छोडे है मेरे लिये !”
रीमा जाने को हुई तो रितेश ने उसका हाथ थाम लिया और मूवी की दो टिकट उसके हाथ में रख दी और मुस्काराते हुए बोला
“तुम कब से कह रही थी ना मूवी देखने के लिये । ये लो तुम्हारी मनपसंद मूवी के टिकट और ये… मेरे मनपसंद गजरे..! जल्दी से तैयार हो जाओ ।”
रीमा की आँखों से टपटप आँसू बह निकले ।
“यार तुम्हारा तो मुझे समझ ही नही आता । गिफ्ट न लाओ तो झगडा… लाओ तो आँसू !”
रीमा ने मुस्कुरा कर झट रितेश के होंठों पर उंगली रख दी।
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