“हम बालको को इस्कूल पढ़ने भेजे हैं या बेमतलब के काम के लिए। जब देखो मैडमजी नई नई चीजें मंगाती रहवे हैं  । “

            “अम्मा अगर आज शीशे और फेविकोल नही ले गया तो मैडम जी मारेंगी। “

          “हमाए पास नही है पैसे, किसी तरह पेट काटकर फीस के पैसों की जुगाड़ करो तो रोज इस्कूल से नई फरमाइस। जीना मुसकिल कर दिया है इन मास्टरनियों ने।”

          “अम्मा …”

          “चुपकर छोरा, दो झापड़ खा लेगा तो तेरा कछु न बिगड़ जाएगो।”

          राजू  बस्ता टाँगकर मुँह लटकाए हुए विद्यालय चल दिया। पर पिटाई के भय ने उसकी गति को बहुत धीमा कर दिया था। कल ही तो मैडम ने सजावटी सामान न ले जाने पर उसे खूब भला बुरा कहा था और दो चांटे भी लगाए थे। सबके सामने हुए अपमान ने उसके कोमल मन को बहुत आहत किया था। सुस्त चाल से चलता हुआ जा रहा था कि रेलवे लाइन के पास कुछ किशोर लड़कों के समूह ने उसका ध्यान आकर्षित किया। वह उत्सुकता से उस ओर चल पड़ा।

         वहाँ कुछ किशोर बच्चे जुआ खेलने में मगन थे। एक दो बच्चों के हाथ मे सुलगते हुए बीड़ी  के ठूँठ भी फँसे हुए थे। उसे देखकर उन सबका ध्यान उसकी ओर आकर्षित हुआ।

         “आ जा, खेलेगा क्या ?”

          वह मौन रहा, उसे समझ न आया कि क्या जवाब दे।

         ” बोल न, खेलना है तो बैठ जा। ” एक ने फिर पूछा।

        ” मेरे पास कुछ नही। ” उसने विवशता बताई।

पूछने वाले ने उसका जायजा लिया और फिर उसकी निगाह राजू के बस्ते और उसमें रखी किताबों  पर जम गई। उसकी आँखों मे एक चमक उभरी।

          “ये है तो इतना माल।”

           उसकी निगाह का पीछा करते हुए राजू की दृष्टि भी बैग पर जम गई और चेहरे पर कुछ असमंजस के भाव उभर आये।

          ” लेकिन ये तो पढ़ने के लिये … “

          ” अब तक क्या मिल गया पढ़कर? एक बार दाँव लगाकर देख। अगर जीत गया तो ये सब माल तेरा ” राजू की दृष्टि एक, दो और पाँच के नोटों के ढेर पर पड़ी ।उसके हाथ बस्ते पर कस गए और चेहरे पर कशमकश उभर आई, और फिर बस्ता धीरे धीरे कंधे पर से नीचे सरकने लगा। 

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