“देखो यार तुमसे पहले भी कहा है ,किसी के जाति-धरम पर मत जाया करो” “और तुम जो दूसरों की जाति पर कमेंट कसते हो वो ?वो क्या है? परसों का दिन भूल गए ?जब जाति की बात तुमने निकाली थी, मैंने नही।”उस दिन बातों- बातों में अचानक किसी के मुख से कुछ आपत्तिजनक […]
सन्तोष सुपेकर
Posted inलघुकथा
मरीज की फीस
“डॉक्टर साहब ने फीस बढाकर सात सौ रुपये कर दी है।10 दिन में एक बार देखने की!”सड़क पर घूमते रामनिवासजी ने दो व्यक्तियों का वार्तालाप सुना तो चौंक उठे, “ऐं?मेरा बेटा भी तो डॉक्टर है ये तो मैं भूल ही जाता हूँ।वह भी तो देखने की *फीस* लेता है ,मैं यही करूंगा अब!”बड़बड़ाते हुए वे […]