Posted inकहानी, उपन्यास

विभाजित सत्य

क्लीनिक में मरीजों की भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। बीच-बीच में मरीज कम्पाउंडर से पूछ रहे थे, “क्यों भाई, डॉक्टर साहब कितने बजे आएँगे?” बड़ी ही बेरुखी से वह सबको बस एक ही जवाब दे रहा था, “अपने समय से।” सामने बैठी एक युवती बड़ी देर से कमर दर्द से तड़प रही थी। उसके […]

Posted inकहानी, लघुकथा

भय की कगार पर 

सीढ़ियाँँ चढ़ती जैसे ही मैं छत पर पहुँची, इधर से उधर बलखाती गिलहरियाँ, आपस में बतियाते कबूतर और ऊपर आसमान में चमकता सूरज अपनी बुलंदियों पर था। अहा! कितना मनोरम दृश्य था। अचानक मन में ख्याल आया, क्यों न कैद कर लूँ इन सबको अपने कैमरे में…। फोकस बनाया ही था कि एक कबूतर महराज […]