साल भर बाद वसुधा का अपने गृह नगर तबादला हुआ। घर का दरवाजा खोलकर जैसे ही वह अंदर दाखिल हुई तो हर तरफ जमी धूल व मकड़ी के जाले देख उसकी थकान चार गुना और बढ़ गई। सामान रख कर चैन से बैठने को भी जब कोई साफ जगह नज़र नहीं आई तो उसके कदमों ने छत की ओर अपना रूख किया।

छत पर जैसे ही उसकी नजर रंग-बिरंगे फूलों से लदे गमलो पर पड़ी तो उसका चेहरा खिल गया। लेकिन वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ये सब बिना पानी दिये इतने समय तक कैसे जिंदा रह सकते है ? तभी पास की छत से आवाज़ आई, ‘अरे.. मेमसाब, आप कब आईं ?’

वसुधा ने उस ओर देखा तो पड़ोस की छत पर पहले उसके यहां रह चुकी कामवाली बाई चंदा थी। उसे वहां देख वसुधा ने हैरानी से पूछा, ‘तुम यहां कैसे ?’

‘मेमसाब, जब आपका तबादला हुआ तो जाने से सिर्फ दो दिन पहले ही आपने मुझे बताया और मेरा हिसाब कर दिया। ऐसे में दूसरा काम ढूंढने में मुझे बहुत परेशानी हुई। कुछ दिन बाद आपकी पड़ोसी वाली आंटी मुझे सब्जी मंडी में मिली। उन्होंने मुझसे अपने घर के काम के लिए रख लिया।

यहां आकर उनकी छत पर जब कपड़े सुखाने आई तो मेरी नजर आपकी छत पर रखें इन गमलों पर पड़ी। तबसे मैं आंटी की छत से ही पाईप लेकर रोज इन गमलों में थोड़ा-थोड़ा पानी डाल रही हूं।

चंदा की बात सुनकर एक साल से बंद पड़े घर में महकते फूलों का राज अब वसुधा को समझ आ गया। उसने चंदा की इस समझदारी के लिए उसका शुक्रिया अदा किया और कहा, ‘कल से आंटी के यहां काम पूरा करके हमारे यहां भी आना। इन महकते फूलों को मुझसे ज्यादा तुम्हारी जरूरत है।’

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