Kunthit bhookh Hindi Stories: वो सड़क पर लापरवाह उद्देश्यहीन इधर उधर यूं ही भटक रहा था। काम की तलाश में था मगर काम मिलने की कोई संभावना नहीं थी, दूर – दूर तक न थी , मास्क लगा ये वक्त है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। उसने कुंठित हो अपना मास्क नोंच फेंका , हालांकि बड़े कष्ट सहने के बाद पूर्वजन्म के सद्कर्मों के पुण्य से या कह लो दैवयोग से कल ही उसे यह मास्क मिला था। उसने बहुत बार मास्क न लगाने की वजह से पुलिस की मार खाई थी जुर्माना भरने की उसकी औकात न थी ये बात पुलिस उसका हुलिया देख के ही समझ जाती थी आखिर देश की पुलिस बड़ी होशियार जो ठहरी इस लिए उसके रिरियाने से पहले ही कि, ” साब मास्क कहाँ से लाऊं जेब में धेला नहीं, समझ नहीं आता मुंह से खाऊं या मुंह पर मास्क लगाऊं।” उस पर दनादन लाठी बरसने लगती, उसके मार से बचने के कई बार के अनुभवजन्य सच्चे डायलाग भी ऐसे में मुंह से कम ही फूट पाते इससे पहले ही ठुल्लों की अपनी रोज़ी जनित कुंठाएं उनकी लाठी में समा उसपर बरस पड़तीं, गंदी गालियों की बौछार उसके मन को और लाठियां शरीर के अलग – अलग अंगों को एक साथ हताहत करतीं। वो गली के कुत्ते के सबसे डरपोक पिल्ले की तरह किकिया के रह जाता, अब तो हाल ये हो गया था कि पुलिस को देखते ही वह काल्पनिक दुम दबा लेता गाड़ी की लो बीम की तरह नज़र झुका पतली गली या किसी नाली या गड्ढे में पनाह लेने की जुगत करता। ऐसे ही किसी क्षण में जब कि वो गंदी नाली में छुपने का प्रयास कर रहा था उस पर महा दानी सज्जनों के एक पूरे के पूरे समूह की नज़र पड़ी, वो पुलिस की लाठी और गाली से इतना न घबराया था जितना उन लोगों के उत्साह से सहम गया था। उन्होंने उसको सामूहिक रूप से नाली से उठा कर बाहर निकाला उसको पकड़ कर नख से शिख तक कीटाणुमुक्त किया फिर अपने कीटाणु मुक्त करकमलों से उसके मुंह पर मास्क लगाया। यह प्रक्रिया बार – बार दोहराई गई। कोई बीस एक सज्जन थे सब ने बारी – बारी उसको मास्क लगाते हुए फोटो खिंचवाए किसी के फोटो सही न आने पर कई – कई बार एक ही सज्जन ने फोटो खिंचवाए, आख़िर दान के साथ यश मिलना ऐसा ही है जैसे भरपेट पौष्टिक भोजन के बाद कुछ स्वादिष्ट मीठा इसकी तुलना सम्भोग के चरम से भी हो सकती है आखिर तृप्ति तो तृप्ति है। अंत में उसको सामने बैठा अलग अलग कोण से बहुत सी सामूहिक फोटो भी खींची गईं थीं।
क्या कहे किस से कहे कि , उसकी बेचारगी का किस कदर सामूहिक बलात्कार किया था उन्होंने। अगले दिन कई जगह पर पोस्टर लगे थे, वो देख कर भौंचक था। ये तो वही तस्वीरें थीं विशेषतः सामूहिक वाली ; सुबह एक दुकान में चलते टेलीविजन पर भी उसको खबरी चैनल में अपनी वही तस्वीर दिखी दोपहर में दुकान के सामने से ग़ुज़रा तब भी दिखी, शाम को भी। उसको अपना चेहरा बड़ा दयनीय लगा था। वो भी बेचारगी का मुखौटा और भी पक्का लगा इस आस में फोटो खिंचवाता रहा था कि शायद उसको राशन देते हुए भी फोटो खिंचवाई जाएगी यानी अगले राउंड में उसकी भूख को कैमरा के सामने नंगा किया जाएगा। मगर नहीं ऐसा न हुआ। वो उसको एक मास्क दे उसकी भूख की लाज बचा गए।
भूख बड़ी ही बेशर्म सी ! अपने उघाड़े जाने का इंतज़ार ही करती रह गई…
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