वह सुबह-सुबह इस बियाबान समुद्र किनारे घूमने को निकला तो सामने चौंकाने वाला नज़ारा था।एक भद्रपुरुष सा लगने वाला शराबी वहीं तट पर मछली पकड़ने वाले जाल में लिपटा पड़ा था।वह हाथ-पाँव मार रहा था,लेकिन सुलझने की बजाय और उलझता जा रहा था।
वह दौड़ कर शराबी के पास पहुंचा, जाल को सुलझाने की कोशिश करने लगा-“अरे भई,कैसे अटक गए इस जाल में?”
“कल रात मेरे जन्मदिन की पार्टी थी,ज्यादा ‘पी’ गई।सुबह तक नशा नहीं उतरा….हिच् और मैं जाल लेकर यहां मछली पकड़ने आ गया हिच्, हवा बहुत तेज थी,हिच..हिच…”
इस मुसीबत से शराबी का ध्यान हटाने के लिए उसने बात को आगे बढ़ाया-“तो कैसी रही कल पार्टी?”
“लोग चाहते थे कि मैं डांस करूँ हिच्,लेकिन मेरा सोने का मूड बन गया….हिच्”
“फिर?”
“फिर पार्टी खत्म हो गई और वे हिच्… मतलबी लोग वहां से चलने लगे।तब तक मेरा मूड डांस करने का बन गया था हिच्, लेकिन वे सेलफिश लोग रुके नहीं, चले गए….”
जाल सुलझता जा रहा था।फिर शराबी का ध्यान बंटाया-“मतलब जो तुम चाहो, दुनिया उसके मुताबिक ही चले,नहीं तो सब सेलफिश हो गए….”जाल सुलझ चुका था।
“शायद तुम जानते नहीं हो हिच् ….कि मैं कौन हूँ।पाँच फ्लैट, चार फैक्ट्री हैं।आठ कारें हैं।हिच्…बड़े पावरफुल लोग जानते हैं मुझे….”शराबी ने अपने तरीक़े से सफाई दी-“खैर हिच्, जाल से निकालने के लिए तुम्हारा शुक्रिया।”
“अरे भाई,उलझाने वाला जाल तो तुम्हारे भीतर है,उससे सुलझो।” उसकी बात को अनसुना कर शराबी झूमता हुआ वहां से चल पड़ा।
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