“चार-चार बेटे हो कर भी कोई नहीं जो अंतिम समय मुँह में गंगाजल डाल सके |” अस्पताल स्टॉफ के लोग आपस में बात कर रहे थे | सेठ धनराज हार्ट अटैक होने से आज अस्पताल में वेंटीलेटर पर हैं , चारों बेटे व्यापार के सिलसिले में देश के बाहर हैं | दिल के कुछ भाग में कोशिकाओं के मरने से रक्त संचार अवरूध्द हो गया है इसलिए ऑक्सीजन की कमी हो गई है | डॉक्टर अपनी ओर से महँगे से महँगा इलाज कर रहे हैं | कृत्रिम श्वासनली से उनकी धड़कने चल रही हैं मगर पता नहीं डोर कब टूट जाए |
“अ…अं….अं …” किसी के कराहने की आवाज ने सेठ धनराज की बेहोशी टूटी,
“क..क..कौन है भाई …क क कौन क..रा..ह रहा है …क्या तुम्हें भी मेरी तरह हार्ट की तकलीफ हैं ?” अटकते हुए सेठ धनराज ने अपनी गर्दन उस दिशा में घुमाई |
“हाँ ! मैं भी तुम्हारी तरह हार्ट की पीड़ा से गुजर रही हूँ |”
“कैसे …?”
“जैसे अधिक वसा के जमने से तुम्हारी शिराओं में रक्त का प्रवाह रुक गया, तुम्हारी साँसें अटक रही हैं, बैचेनी महसूस कर रहे हो | उसी तरह प्लास्टिक की पन्नियाँ , बोतलों ने मेरे उद्गम स्थल पर जमकर मेरे प्रवाह को अवरूध्द कर दिया है मेरी भी साँसों को संकट में डाल दिया | तुम्हारी तरह मैं भी वेंटीलेटर पर हूँ कृत्रिम साँस के सहारे जी रही हूँ | न जाने कब डोर टूट जाये |” उसने कराहते हुए कहा |
“मगर तुम हो कौन ?”
“मैं तुम्हारी पतित पावनी गंगा |”
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