Jai Hind Saahab Hindi short stories: आई.पी.एस पासिंग आउट परेड फंक्शन चालू है। कुछ अवॉर्ड्स के बाद अनाउंस हुआ-
“बेस्ट ट्रेनी ऑफ द ईयर-नमन शुक्ला”।
चीफ़ गेस्ट, जब उस नौजवान को,अवार्ड देने लगे।लोगों की तालियों के बीच हॉल में तेज़ आवाज़ गूंजी-
“जय हिंद साहब”
सबका ध्यान उस ओर गया। एक अधेड़ उम्र की महिला सैल्यूट मार कर सावधान की मुद्रा में खड़ी थी।चीफ़ गेस्ट ने उस नौजवान से कुछ कहा। वह मंच से नीचे उतरकर उस महिला की ओर बढ़ने लगा। नीचे आते हुए उसके कानों में एक गन्दी आवाज गूंज रही थी-
“गरीब का बच्चा साहब नहीं बनता।”
वह उस महिला के पास पहुंचा।दोनों की आंखें नम थी।
“आओ’
“नहीं- नहीं, मैं… वहां”
मुख्य अतिथि ने मंच से कहा
“आओ वृंदा!”
वृंदा मंच पर हतप्रभ सी बैठी है। कार्यक्रम जारी है, पर वह पहुंच गई है पंद्रह साल पीछे।
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नौ साल का नमन कह रहा है-
“मां स्कूल की फीस दस दिन में देनी पड़ेगी”
मां को सोच में पड़ा देख फिर बोला,
“मां मेरा नाम भी विनय की स्कूल में लिखा दो ना! वहां पैसा नहीं लगता”
“नहीं बेटा… फिर तू साहब कैसे बनेगा?पता है ना ,तेरे बाबा का सपना। बाबा हमेशा कहते थे
“वृंदा जब मैं बिल्डिंग के गेट पर दरबानी करता हूं और हर छोटे-बड़े को सलाम करता हूं, तो एक अजीब सा सपना देखता हूं अपने नमन को साहब बना देखने का।”
“पर मां बंगले वाले साहब तो कहते हैं ना ,कि गरीब का बेटा साहब नहीं बन सकता। साहब का बेटा ही साहब बनता है। मां वो कह रहे थे ना कि रामू को भी फुल टाइम काम पर रख दो। महीने का पांच हज़ार दे देंगे ।
‘नहीं बेटा, मैं हूं ना’
‘मां तुम कमजोर होती जा रही हो अगर मैं भी पूरे टाइम काम करूंगा तो, तुम्हारा इलाज करा सकेंगे ‘
‘नहीं बेटा तू मेरे साथ छुट्टी में चलता है ना। जो थोड़ा बहुत दे देते हैं ठीक है। और मैं तो बिल्कुल ठीक हूं क्या हुआ है मुझे?’
‘मां एक बात बताओ ना,वो लोग मुझे नमन क्यों नहीं कहते?रामू क्यों कहते हैं? और तुम्हें बाई क्यों कहते हैं? उनका बेटा, वह छोटा साहब भी तुम्हें तू तू क्यों बोलता है?”
“बेटा बड़े लोग कहां सबका नाम याद रख सकेंगे। सब लड़के उनके लिए रामू या हरिया होते हैं और औरतें बाई होती हैं। तू अपना ध्यान पढ़ने में लगा साहब बनना है ना तुझे!’
‘नहीं मां साहब लोग गंदे होते हैं देखा नहीं कैसे बात करते हैं
“अबे ए… चल जूते साफ कर।
ओए चल जूठे कप उठा।
रामू के बच्चे दरवाजा देर से क्यों खोला?
ए बाई अपनी रोटी पर घी लगाने का नई। दान खाता नई खोल रखा।’
‘नमन ज्यादा मत सोच बेटा’
‘मां उस दिन विशेष बाबा याने छोटे साहब का बैट छू लिया,तो गाली देने लगा। हम और कुछ नहीं कर सकते क्या मां?’
‘बेटा कुछ और होता तो.. अच्छा सुन मैं चलती हूं, तू पढ़ हां!’
“मां दोदिन की छुट्टी है ।मैं साथ चलता हूं ।कुछ पैसा मिल जाएगा।”
वृंदा ना नहीं बोल पाई। सोचा, दो महीने की पगार और यह कुछ पैसा मिला कर नमन की फीस भी दे देगी और उसके लिए कुछ नया कपड़ा खरीद लेगी। वो दोनों बंगले पर पहुंचे साहब मेम साहब रात की पार्टी से नहीं लौटे थे उनका चौदह साल का बेटा विशेष बाबा जिसे इन लोगों को ,छोटे साहब कहना पड़ता था, सिगरेट पी रहा था। वृंदा ने कहा
“छोटे साहब, बड़े साहब को पता चलेगा तो गुस्सा करेंगे।”
“चुप तू अपना काम कर, औकात में रह अपनी।”
नमन को गुस्सा आया
“छोटे साहब, मेरी मां से इस तरह बात क्यों कर रहे हो”
“चुप नाली के कीड़े”
‘मैं आपकी शिकायत मेमसाब से करूंगा, कि आप सिगरेट पी रहे थे’
‘अच्छा तेरी यह मजाल!’
कहकर, विशेष नमन के हाथ में सिगरेट का चटका लगाने लगा। नमन जोर से सीखा। वृंदा ने विशेष को धक्का दे दिया। वह गिरा, उतने में साहब, मेम साहब आ गए। मेम साहब ने वृंदा को एक थप्पड़ मार दिया।
“हाउ डेयर यू-तुमने मेरे बेटे पर हाथ उठाया'”
नमन चीखा
“मेम साहब”
“शट अप”
साहब चीखे
‘तुम लोगों की इतनी हिम्मत। दरबान, इनका सामान सर्वेंट क्वार्टर से निकाल कर बाहर फेंको इन्हें बाहर निकालो।’
“साहब मेरी पगार दे दो। बच्चे की फीस देनी है।माफ कर दो हमें।”
मेम साहब चीखी
‘चल निकल यहां से’
दरबान दोनों को खींचकर बाहर ले गया। दरवाजा बंद कर दिया।वे रो रहे थे दरवाजा पीट रहे थे तभी वहां
एक जीप रुकी। उस इलाके के डी.सी.पी राजेश्वर शिंदे राउंड पर थे।
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“जय हिन्द साहब”…ज़ोर की आवाज़ गूंजी।
वृंदा अतीत से वापस वर्तमान में आ गई। डी.सी.पी शिंदे अब कमिश्नर हैं। सामने वही अवार्ड दे रहे हैं। वह फिर सोचने लगी अगर उस दिन इन्होंने सहारा नहीं दिया होता तो,क्या होता! उन बदमाश लोगों को भी उन्होंने समझा दिया था। चुपचाप से इन्हें एक लाख रुपए दे दो। वरना जुवेनाइल और डोमेस्टिक वायलेंस में अंदर डाल दूंगा। उन रुपयों से उसने खोली खरीद ली थी ।उनकी सहायता से उसे महिला बचत गट में काम मिल गया था। अतीत से वृंदा वर्तमान में आ गई थी।
कमिश्नर शिंदे ने कहा,
“वृंदा बन गया तुम्हारा बेटा साहब!” उसे लग रहा था, उसके पति मौजूद हैं।बेटे को साहब बना देख रहे हैं ।वृंदा की आंखों में अब मुस्कुराती हुई नमी तैर रही थी।
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