Namastasyai Short Kahani : “चाहे कोई देखने आए या न आए, ये फ़ालतू के सेलेब्रेशन ज़रूर करवाने होते हैं इन लोगों को,” फ़िज़िक्स टीचर ने कंप्यूटर लैब इंचार्ज से कहा, तो उन्होंने भी सहमति में सिर हिलाया।
लॉकडाउन के चलते बच्चों का स्कूल आना बंद था, मगर मैनेजमेंट के निर्देशानुसार नवरात्रि के उपलक्ष्य में असेम्बली फिर भी होनी थी, जो कि स्कूल की सालाना पत्रिका और वेबसाइट में उल्लेखित की जानी थी। फ़ोटोग्राफर आ चुके थे। स्कूल का स्टाफ भी धीरे–धीरे असेम्बली हॉल में एकत्रित हो रहा था। असेम्बली डायस पर पर्दा पड़ा था, और मंच के आगे रखी मेजों पर फूल और पूजा सामग्री लदी थी।
“अरे, आप तो शुक्र ये मनाओ, मैडम, कि आपको आज सज-धज के नहीं आना पड़ा है,” लैब इंचार्ज ने कहा। “मैंने तो लैब में बिजी होने का बहाना कर दिया था, मगर वर्मा सर ने बहुत सी मैम लोग को अपने इशारे पे नचाया है इस सब के नाम पर।”
“वर्मा? वो लफंगा?” फ़िज़िक्स मैडम ने उत्तेजित होते हुए कहा, तो लैब इंचार्ज ने दांत भींच कर धीमे बोलने का इशारा किया। “वह भला क्यों…”
“उनकी असेम्बली ड्यूटी जो थी, इस बार,” लाइब्रेरियन मैडम ने उनके बगल में स्थान ग्रहण करते हुए बताया।
सह अध्यापक वर्मा जी के रसिक स्वभाव से त्रस्त शिक्षिकाओं की शिकायत पर, प्रिंसिपल मैडम ने पुरुषों के बैठने की व्यवस्था अलग स्टाफ रूम में कर दी थी। इसी वजह से महिला अध्यापिकाओं में से कुछ को पिछले हफ्ते से चल रही तैयारियों के बारे में जानकारी नहीं थी।
पिछली सीटों पर कुछ पुरुष अध्यापक आ कर विराजने लगे।
“अरे, मैं तो शैलजा मैम के लिए आया हूँ, बस!” असैम्बली इंचार्ज वर्मा जी के टीम सहयोगी और अभिन्न मित्र, हिंदी के टीचर ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए अपने साथियों से कहा।
“हां, भई, शैलपुत्री की सफेद साड़ी में क्या गजब लगेंगी आज!” किसी ने उत्तर दिया।
पिछली कतार में चल रही फुसफुसाहट के अंश अगली पंक्ति तक पहुँचे तो फ़िज़िक्स मैडम ने चौंक कर लाइब्रेरियन मैडम की ओर देखा। “ये क्या प्रोग्राम सेट किया है वर्मा जी ने?”
“और सुना है अपनी प्रिंसिपल मैडम को सिद्घिदात्री बनाया गया है?” पिछली सीट पर चल रही चर्चा में लिप्त अध्यापकों के स्वर में अब और रोमांच था।
“अरे, ये वर्मा जी कहां हैं? उन्होंने ही सारे नाम चुने हैं, और इंग्लिश सर ने सबको राज़ी किया। उनके ही पास लिस्ट है! हमें ज़्यादा अच्छे से याद नहीं आ रहा!” हिंदी टीचर ने अफसोस जताते हुए कहा।
“इस बार बच्चियों की जगह अध्यापिकाओं को नव देवियाँ बनाया है, मैडम!” लाइब्रेरियन मैडम ने बताया।
तभी पर्दा उठा। नवदुर्गा के रूप में सजी–धजी देवियाँ बनी शिक्षिकाएँ पहचान में नहीं आ रही थीं।
वर्मा जी अपने मित्रों के बीच आ कर बैठे। “इस बार मंच की देवियों का रोचना डाइरेक्टर सर नहीं कर रहे हैं, सोशल डिस्टेंसिंग के कारण,” उन्होंने सबके बीच फुसफुसाया।
“वर्मा जी ने बहुत मेहनत की है इस बार!” मित्र ने दांत चमकाते हुए मित्रता दिखाई। “क्यों ना उनको ही…”
हिंदी टीचर की बात का अनुमोदन किसी ने भवें उचका कर, तो किसी ने आंख मार कर किया।
फौरन ही वर्मा जी को कुर्सियों की कतार से बाहर, स्टेज की ओर ले जाया गया, और हल्दी कुमकुम से सजी थाली अब उनके हाथ में आ गई।
हमेशा सीटी बजाते रहने वाले वर्मा जी के लिए यह बिलकुल अलग अनुभव था। अब तक मन में उमड़ रहे विचार क्षण भर में सहम कर दुबक गए।
मंच पर विराजित सहकर्मी उन्हें साक्षात् देवियाँ लग रही थीं।
“प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।। पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।। नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।” शंख और घंटे की ध्वनि के साथ-साथ बजता मंत्र वातावरण को दिव्य बना रहा था।
वर्मा जी के हृदय की धड़कन बढ़ गई। पसीजते हाथों से सबके माथे पर तिलक लगाने की तैयारी करते वर्मा जी के पाँव शैलजा मैम के आगे ही ठिठक गए। लाउडस्पीकर में से आती म्यूज़िक टीचर की आवाज़ पूरे हॉल में गूंज उठी—
“वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ अर्थात, देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।”
तिलक लगाकर वर्मा जी ने झुक कर, कांपते हाथों से शैलजा मैडम के पैर छू लिए। आज पहली बार शैलजा मैम को भी उनका स्पर्श लिजलिजा नहीं लगा था।
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