Daayitv Hindi Kahani: दरवाजे के अन्दर घूसते ही नाक पर रूमाल रखना मुनासिब  लगा.क्योंकि घर के भीतर की गन्दगी कबाड़खाने का एहसास करा रहा था .

दीवाल पर जगह- जगह सीलन ! खूटी हुई कील और दरकती दीवारें बूढ़े इंसान के त्वचा पर आये झुर्री का एहसास दिला रहा था.

— चलिए बाहर ही बैठता हूँ .- दास बाबू ने हाथ में पटिया( चटाई) लिये बाहर आये और नरम घास पर बिछा कर बैठ गए. और बताने लगे –

‘ ये मकान मैंने अपने जवानी के समय लिया था. शादी से ठीक पहले.तब ये भी पुरा जवान था.हट्ठा- कट्ठा ठीक मेरे ही तरह .’

— दास बाबू , अब आप ही इस का सही कीमत लगा दीजीए.ताकि हम लोगों को खरीद का निर्णय लेने मे आसान हो..क्योंकि यह भी आप के तरह सेवानिवृति ही हुआ पड़ा है.- मल्लिक जी दिल्लगी भरे लहजे में बोल पड़े.

–देखिये मल्लिक जी , अभी तक इसने सब कुछ दे दिया.जैसे एक माँ- बाप अपने संतान को देता है.  मेरा परवरिश और बच्चों का स्वयं के पैर पर खडा़ होना आदि .फिर चौथापन का क्या कीमत शेष रह जाता है.- दास जी एक ही साँस में अपनी आह बयाँ कर गए.

— तो आप के नए पौध कहाँ है , जिस पर आप भविष्य के लिए आश्वस्त हो सकते हैं ? मल्लिक जी ने दास बाबू के संतान का दायित्व समझना चाहा. –उसने भी एक नई मकान ले ली है.औऱ सपरिवार   वहीं शिफ्ट हो गया है. अपने नौनिहालों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए.

(Visited 1 times, 1 visits today)

Republish our articles for free, online or in print, under a Creative Commons license.